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उ॒त मे॑ वोचता॒दिति॑ सू॒तसो॑मे॒ रथ॑वीतौ। न कामो॒ अप॑ वेति मे ॥१८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta me vocatād iti sutasome rathavītau | na kāmo apa veti me ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒त। मे॒। वो॒च॒ता॒त्। इति॑। सु॒तऽसो॑मे। रथ॑ऽवीतौ। न। कामः॑। अप॑। वे॒ति॒। मे॒ ॥१८॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:61» मन्त्र:18 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:29» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:18


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! आप (मे) मेरे लिये (रथवीतौ) वाहनों के गमन में (उत) और (सुतसोमे) उत्पन्न किये हुए ऐश्वर्य्य आदि में सत्य का उपदेश देने योग्य हैं (इति) इस प्रकार (वोचतात्) उपदेश देवें जिससे (मे) मेरी (कामः) कामना (न) नहीं (अप, वेति) नष्ट होती है ॥१८॥
भावार्थभाषाः - सब मनुष्यों को चाहिये कि विद्वान् जनों के प्रति यह प्रार्थना करें कि आप लोग हम लोगों को ऐसे उपदेश करो, जिससे हम लोगों की इच्छायें सिद्ध होवें ॥१८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे विद्वन् ! भवान् मे रथवीतावुत सुतसोमे सत्यमुपदेश्यमिति वोचतात्। यतो मे कामो नाप वेति ॥१८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) अपि (मे) मह्यम् (वोचतात्) उपदिशतु (इति) (सुतसोमे) निष्पादितैश्वर्य्यादौ (रथवीतौ) रथानां गतौ (न) (कामः) कामना (अप) (वेति) नश्यति (मे) मम ॥१८॥
भावार्थभाषाः - सर्वैर्मनुष्यैर्विदुषः प्रतीयं प्रार्थना कार्या भवन्तोऽस्मभ्यमीदृशानुपदेशान् कुर्वन्तु यतोऽस्माकमिच्छाः सिद्धाः स्युरिति ॥१८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सर्व माणसांनी, विद्वानांना ही प्रार्थना करावी की तुम्ही आम्हाला असा उपदेश करा की ज्यामुळे आमच्या इच्छा पूर्ण व्हाव्यात. ॥ १८ ॥