वांछित मन्त्र चुनें

व्य१॒॑क्तून्रु॑द्रा॒ व्यहा॑नि शिक्वसो॒ व्य१॒॑न्तरि॑क्षं॒ वि रजां॑सि धूतयः। वि यदज्राँ॒ अज॑थ॒ नाव॑ ईं यथा॒ वि दु॒र्गाणि॑ मरुतो॒ नाह॑ रिष्यथ ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vy aktūn rudrā vy ahāni śikvaso vy antarikṣaṁ vi rajāṁsi dhūtayaḥ | vi yad ajrām̐ ajatha nāva īṁ yathā vi durgāṇi maruto nāha riṣyatha ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वि। अ॒क्तून्। रु॒द्राः॒। वि। अहा॑नि। शि॒क्व॒सः॒। वि। अ॒न्तरि॑क्षम्। वि। रजां॑सि। धू॒त॒यः॒। वि। यत्। अज्रा॑न्। अज॑थ। नावः॑। ई॒म्। य॒था॒। वि। दुः॒ऽगानि॑। म॒रु॒तः॒। न। अह॑। रि॒ष्य॒थ॒ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:54» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:14» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:4


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या जानना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मरुतः) मनुष्यो ! (यत्) जो (शिक्वसः) सामर्थ्य से युक्त (धूतयः) काँपनेवाले (रुद्राः) पवन (अक्तून्) प्रसिद्धों को प्रकट करते हैं और (अहानि) दिनों का (वि) विशेष करके परिणाम करते अर्थात् गिनाते हैं (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष के प्रति (रजांसि) लोकों का (वि) विधान करते और (वि) विशेष करके चलाते हैं तथा (ईम्) जल को जैसे (नावः) बड़ी नौकायें, वैसे सम्पूर्ण लोकों को चलाते हैं, उन (अज्रान्) निरन्तर चलानेवालों को (वि, अजथ) प्राप्त हूजिये और (यथा) जैसे (दुर्गणि) दुःख से प्राप्त होने योग्यों को (न) नहीं (अह) ग्रहण करने में (वि, रिष्यथ) नाश करें वैसे (वि) विचरिये ॥४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि वायुविद्या को अवश्य जानें ॥४॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं ज्ञातव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे मरुतो ! यद्ये शिक्वसो धूतयो रुद्रा अक्तून् प्रकटयन्त्यहानि वि मिमतेऽन्तरिक्षं प्रति रजांसि विदधति विचालयन्तीं नाव इव सर्वान् लोकानागमयन्ति तानज्रान् व्यजथ यथा दुर्गाणि नाह वि रिष्यथ तथा विचरत ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वि) (अक्तून्) प्रसिद्धान् (रुद्राः) (वायवः) (वि) विशेषे (अहानि) दिनानि (शिक्वसः) शक्तिमन्तः (वि) (अन्तरिक्षम्) (वि) (रजांसि) लोकान् (धूतयः) ये धुन्वन्ति (वि) (यत्) (अज्रान्) सततगामिनः (अजथ) गच्छथ (नावः) महत्यो नौकाः (ईम्) जलम् (यथा) (वि) (दुर्गाणि) दुःखेन गन्तुं योग्यानि (मरुतः) मनुष्याः (न) (अह) विनिग्रहे (रिष्यथ) हिंस्यथ ॥४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्वायुविद्या अवश्यं ज्ञातव्या ॥४॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी वायुविद्या अवश्य जाणाव्या. ॥ ४ ॥