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प्र वो॑ मरुतस्तवि॒षा उ॑द॒न्यवो॑ वयो॒वृधो॑ अश्व॒युजः॒ परि॑ज्रयः। सं वि॒द्युता॒ दध॑ति॒ वाश॑ति त्रि॒तः स्वर॒न्त्यापो॒ऽवना॒ परि॑ज्रयः ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra vo marutas taviṣā udanyavo vayovṛdho aśvayujaḥ parijrayaḥ | saṁ vidyutā dadhati vāśati tritaḥ svaranty āpo vanā parijrayaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। वः॒। म॒रु॒तः॒। त॒वि॒षाः। उ॒द॒न्यवः॑। व॒यः॒ऽवृधः॑। अ॒श्व॒ऽयुजः॑। परि॑ऽज्रयः। सम्। वि॒ऽद्युता॑। दध॑ति। वाश॑ति। त्रि॒तः। स्वर॑न्ति। आपः॑। अ॒वना॑। परि॑ऽज्रयः ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:54» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:14» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मरुतः) मनुष्यो ! जो (तविषाः) बलवान् (उदन्यवः) अपने को जल की इच्छा करने (वयोवृधः) अवस्था से बढ़ने वा अवस्था को बढ़ाने (अश्वयुजः) शीघ्रगामी पदार्थों को युक्त करने (परिज्रयः) और सब और जानेवाले जन (विद्युता) बिजुली के साथ (वः) आप लोगों को (सम्, दधति) उत्तम प्रकार धारण करते और (वाशति) वाणी के सदृश आचरण करते हैं और (त्रितः) तीन से (परिज्रयः) सब ओर जानेवाले (आपः) जल (अवना) रक्षण आदि का (प्र, स्वरन्ति) अच्छे प्रकार उच्चारण करते हैं, उनका आप लोग सत्कार करो ॥२॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य बिजुली आदि की विद्या को जानते हैं, वे सम्पूर्ण सुख को सब के लिये धारण करते हैं ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्म्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे मरुतो ! ये तविषा उदन्यवो वयोवृधोऽश्वयुजः परिज्रयो विद्युता सह वो युष्मान् सन्दधति वाशति। त्रितः परिज्रय आपोऽवना प्र स्वरन्ति तान् यूयं सत्कुरुत ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (वः) युष्मान् (मरुतः) मनुष्याः (तविषाः) बलवन्तः (उदन्यवः) आत्मन उदकमिच्छवः (वयोवृधः) ये वयसा वर्धन्ते वयो वर्धयन्ति वा (अश्वयुजः) येऽश्वान् सद्योगामिनः पदार्थान् योजयन्ति (परिज्रयः) ये परितः सर्वतो गच्छन्ति ते (सम्) (विद्युता) (दधति) (वाशति) वाणीवाचरन्ति (त्रितः) त्रिभ्यः (स्वरन्ति) शब्दयन्ति (आपः) जलानि (अवना) अवनादीनि रक्षणदीनि (परिज्रयः) परितः सर्वतो ज्रयो गतिमन्तः ॥२॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या विद्युदादिविद्यां जानन्ति ते सर्वं सुखं सर्वार्थं दधति ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे विद्युत इत्यादी विद्या जाणतात ती सर्वांना सुख देतात. ॥ २ ॥