विप्रे॑भिर्विप्र सन्त्य प्रात॒र्याव॑भि॒रा ग॑हि। दे॒वेभिः॒ सोम॑पीतये ॥३॥
viprebhir vipra santya prātaryāvabhir ā gahi | devebhiḥ somapītaye ||
विप्रे॑भिः। वि॒प्र॒। स॒न्त्य॒। प्रा॒त॒र्याव॑ऽभिः। आ। ग॒हि॒। दे॒वेभिः॑। सोम॑ऽपीतये ॥३॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
विद्वानों के साथ विद्वान् क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
विद्वद्भिस्सह विद्वान् किङ्कुर्य्यादित्याह ॥
हे सन्त्य विप्र ! त्वं प्रातर्यावभिर्देवेभिर्विप्रेभिस्सह सोमपीतय आ गहि ॥३॥