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ते ते॑ देव नेत॒र्ये चे॒माँ अ॑नु॒शसे॑। ते रा॒या ते ह्या॒३॒॑पृचे॒ सचे॑महि सच॒थ्यैः॑ ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

te te deva netar ye cemām̐ anuśase | te rāyā te hy āpṛce sacemahi sacathyaiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ते। ते॒। दे॒व॒। ने॒तः॒। ये। च॒। इ॒मान्। अ॒नु॒ऽशसे॑। ते। रा॒या। ते। हि। आ॒ऽपृचे॑। सचे॑महि। स॒च॒थ्यैः॑ ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:50» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:4» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (नेतः) अग्रणी (देव) विद्वन् ! (ये) जो (ते) आपके (अनुशसे) अनुशासन के लिये (इमान्) इनको सम्बन्धित करते हैं (ते, ते) वे वे सत्कार करने योग्य हों (च) और जो (राया) धन से सब की रक्षा करते हैं (ते) वे प्रीति से युक्त होते हैं और जो (हि) निश्चित (आपृचे) सब ओर से सम्बन्ध के लिये (सचथ्यैः) पूर्ण सम्बन्धों में उत्पन्न हुओं के साथ वर्त्तमान हैं, उनके साथ हम लोग (सचेमहि) मिलें ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वन् ! आप इन वर्त्तमान और समीप में स्थित जनों को शिक्षा दीजिये और विद्वानों के साथ मिल के विद्याओं को प्राप्त हूजिये ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे नेतर्देव ! ये तेऽनुशस इमान् सम्बध्नन्ति ते ते सत्कर्त्तव्याः स्युः। ये च राया सर्वान् रक्षन्ति ते प्रीतिमन्तो जायन्ते। ये हृापृचे सचथ्यैर्वर्त्तन्ते तैः सह वयं सचेमहि ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) तव (ते) (देव) विद्वान् (नेतः) नायक (ये) (च) (इमान्) (अनुशसे) अनुशासनाय (ते) (राया) धनेन (ते) (हि) (आपृचे) समन्तात् सम्पर्काय (सचेमहि) संयुञ्जमहि (सचथ्यैः) सचथेषु समवायेषु भवैः ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वँस्त्वमिमान् वर्त्तमानान् समीपस्थान् जनाननुशाधि विद्वद्भिः सह सङ्गत्य विद्याः प्राप्नुहि ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वाना! तू जवळ असलेल्या लोकांना शिक्षण दे व विद्वानांचा संग करून विद्या प्राप्त कर. ॥ २ ॥