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दे॒वानां॒ पत्नी॑रुश॒तीर॑वन्तु नः॒ प्राव॑न्तु नस्तु॒जये॒ वाज॑सातये। याः पार्थि॑वासो॒ या अ॒पामपि॑ व्र॒ते ता नो॑ देवीः सुहवाः॒ शर्म॑ यच्छत ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

devānām patnīr uśatīr avantu naḥ prāvantu nas tujaye vājasātaye | yāḥ pārthivāso yā apām api vrate tā no devīḥ suhavāḥ śarma yacchata ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दे॒वाना॑म्। पत्नीः॑। उ॒श॒तीः। अ॒व॒न्तु॒। नः॒। प्र। अ॒व॒न्तु॒। नः॒। तु॒जये॑। वाज॑ऽसातये। याः। पार्थि॑वासः। याः। अ॒पाम्। अपि॑। व्र॒ते। ताः। नः॒। दे॒वीः॒। सु॒ऽह॒वाः॒। शर्म॑। य॒च्छ॒त॒ ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:46» मन्त्र:7 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:28» मन्त्र:7 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजा के समान राजपत्नी न्याय करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (याः) जो (देवानाम्) विद्वानों वा राजाओं के न्याय की (उशतीः) कामना करती हुई (पत्नीः) स्त्रियाँ (नः) हम लोगों की वा हमारे सम्बन्धी पदार्थों की (अवन्तु) रक्षा करें और (तुजये) बल और (वाजसातये) संग्राम के लिये (प्र, अवन्तु) अच्छे प्रकार रक्षा करें और (याः) जो (पार्थिवासः) पृथिवी में विदित (अपाम्) जलों के (व्रते) स्वभाव में (अपि) भी (देवीः) प्रकाशमान (सुहवाः) उत्तम आह्वानवाली (नः) हम लोगों को (शर्म) सुखकारक गृह देवें और (ताः) उनको (नः) हम लोगों के लिये आप लोग (यच्छत) दीजिये ॥७॥
भावार्थभाषाः - जैसे राजा लोग पुरुषों का न्याय करें, वैसे ही स्त्रियों के न्याय को रानियाँ करें ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजवद्राज्ञः स्त्री न्यायं करोत्वित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! या देवानां राज्ञां न्यायमुशतीः पत्नीर्नोऽवन्तु तुजये वाजसातये प्रावन्तु याः पार्थिवासोऽपां व्रतेऽपि देवीः सुहवा नः शर्म प्रदद्युस्ता नो यूयं यच्छत ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (देवानाम्) विदुषाम् (पत्नीः) स्त्रियः (उशतीः) कामयमानाः (अवन्तु) रक्षन्तु (नः) अस्मानस्माकं वा (प्र, अवन्तु) (नः) अस्मान् (तुजये) बलाय (वाजसातये) (याः) (पार्थिवासः) पृथिव्यां विदिताः (याः) अपां जलानाम् (अपि) (व्रते) शीले (ताः) (नः) अस्मभ्यम् (देवीः) देदीप्यमानाः (सुहवाः) शोभनाह्वानाः (शर्म) सुखकारकं गृहम् (यच्छत) ददत ॥७॥
भावार्थभाषाः - यथा राजानः पुरुषाणां न्यायं कुर्युस्तथैव स्त्रीणां न्यायं राज्ञ्यः कुर्य्युः ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे राजे लोक पुरुषांचा न्याय करतात तसाच राणींनी स्त्रियांचा न्याय करावा. ॥ ७ ॥