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स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे (देवाः) विद्वान् जनो ! आप लोग जैसे हम लोग (उरौ) बहु (अनिबाधे) व्यवहार में (स्याम) होवें वैसे करिये ॥१६॥
भावार्थभाषाः - विद्वानों को चाहिये कि सब मनुष्य जैसे विघ्नरहित होवें, वैसा करें ॥१६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वय:
हे देवा ! यूयं यथा वयमुरावनिबाधे स्याम तथा विदधत ॥१६॥
पदार्थान्वयभाषाः - (उरौ) बहौ (देवाः) विद्वांसः (अनिबाधे) व्यवहारे (स्याम) भवेम ॥१६॥
भावार्थभाषाः - विद्वद्भिः सर्वे मनुष्या यथा निर्विघ्नाः स्युस्तथा विधेयम् ॥१६॥
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माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सर्व माणसे विघ्नरहित होतील असे विद्वानांनी वागावे. ॥ १६ ॥