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स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे (देवाः) विद्वान् जनो ! जैसे हम लोग (अनिबाधे) विघ्नरहित होने पर (उरौ) बहुत सुख करनेवाले कार्य्य में विद्वान् (स्याम) होवें, वैसे आप लोग करिये ॥१७॥
भावार्थभाषाः - अध्यापक विद्वान् जनों को चाहिये कि सम्पूर्ण विद्या के प्रतिबन्धकों का निवारण करके सम्पूर्ण जनों को विद्वान् करें ॥१७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वय:
हे देवा ! यथा वयमनिबाध उरौ विद्वांसः स्याम तथा यूयं विधत्त ॥१७॥
पदार्थान्वयभाषाः - (उरौ) बहुसुखकरे (देवाः) विद्वांसः (अनिबाधे) निर्विघ्ने सति (स्याम) भवेम ॥१७॥
भावार्थभाषाः - अध्यापकैर्विद्वद्भिः सर्वान् विद्याप्रतिबन्धकान् निवार्य सर्वे विद्वांसः सम्पादनीयाः ॥१७॥
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माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - अध्यापक विद्वानांनी संपूर्ण विद्याप्राप्तीच्या अडचणीचे निवारण करून सर्व लोकांना विद्वान करावे. ॥ १७ ॥