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मा मामि॒मं तव॒ सन्त॑मत्र इर॒स्या द्रु॒ग्धो भि॒यसा॒ नि गा॑रीत्। त्वं मि॒त्रो अ॑सि स॒त्यरा॑धा॒स्तौ मे॒हाव॑तं॒ वरु॑णश्च॒ राजा॑ ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mā mām imaṁ tava santam atra irasyā drugdho bhiyasā ni gārīt | tvam mitro asi satyarādhās tau mehāvataṁ varuṇaś ca rājā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मा। माम्। इ॒मम्। तव॑। सन्त॑म्। अ॒त्रे॒। इ॒र॒स्या। द्रु॒ग्धः। भि॒यसा॑। नि। गा॒री॒त्। त्वम्। मि॒त्रः। अ॒सि॒। स॒त्यऽरा॑धाः। तौ। मा॒। इ॒ह। अ॒व॒त॒म्। वरु॑णः। च॒। राजा॑ ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:40» मन्त्र:7 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:12» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब उक्तविषय में राजविषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अत्रे) तीन प्रकार के दुःखों से रहित ! (इरस्या) अन्न की इच्छा से तथा (भियसा) भय से (द्रुग्धः) द्रोह को प्राप्त (इमम्) इसको और (तव) आपके आश्रित (सन्तम्) हुए (माम्) मुझ को (मा) नहीं (नि, गारीत्) निगलिये और जो (त्वम्) आप (मित्रः) मित्र (सत्यराधाः) सत्य आचरण से वा सत्यधन जिनका ऐसे (असि) हो वह आप राजा सब के अधिष्ठाता और (वरुणः) श्रेष्ठ सेना का ईश (च) भी (तौ) वे दोनों (इह) इस संसार में (मा) मेरी (अवतम्) रक्षा करो ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे धर्मिष्ठ राजा और सेना के स्वामी ! अन्याय से किसी के पदार्थ को भी न ग्रहण करें, भय और न्याय के अच्छे प्रकार चलाने से राजधर्म से पृथक् न होवें और सदा ही सत्य धर्म में प्रिय हुए मित्र के सदृश प्रजाओं का पालन करो ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथोक्तविषये राजविषयमाह ॥

अन्वय:

हे अत्रे ! इरस्या भियसा द्रुग्ध इमन्तवाश्रितं सन्तं मां मा नि गारीद्यस्त्वं मित्रः सत्यराधा असि स त्वं राजा वरुणश्च ताविह मावतम् ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मा) निषेधे (माम्) (इमम्) (तव) (सन्तम्) (अत्रे) अविद्यमानत्रिविधदुःख (इरस्या) अन्नेच्छया (द्रुग्धः) प्राप्तद्रोहः (भियसा) भयेन (नि) (गारीत्) निगलेत् (त्वम्) (मित्रः) सखा (असि) (सत्यराधाः) सत्याचरणेन सत्यं वा राधो धनं यस्य (तौ) (मा) माम् (इह) (अवतम्) रक्षतम् (वरुणः) वरः सेनेशः (च) (राजा) सर्वाधिष्ठाता ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे धर्मिष्ठौ राजसेनाध्यक्षावन्यायेन कस्यापि पदार्थं मा गृह्णीयातां भयन्यायप्रचालनाभ्यां राजधर्म्मान्मा चलेतां सदैव सत्यधर्मप्रियौ सन्तौ मित्रवत्प्रजाः पालयेताम् ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे धार्मिक राजा व सेनेचा स्वामी! अन्यायाने कुणाचाही पदार्थ स्वीकारू नकोस. भय व न्यायाने राजधर्मापासून दूर होऊ नकोस. सदैव सत्यधर्मात राहून प्रिय मित्राप्रमाणे प्रजेचे पालन कर. ॥ ७ ॥