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त्वाम॑ग्ने॒ वसु॑पतिं॒ वसू॑नाम॒भि प्र म॑न्दे अध्व॒रेषु॑ राजन्। त्वया॒ वाजं॑ वाज॒यन्तो॑ जयेमा॒भि ष्या॑म पृत्सु॒तीर्मर्त्या॑नाम् ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvām agne vasupatiṁ vasūnām abhi pra mande adhvareṣu rājan | tvayā vājaṁ vājayanto jayemābhi ṣyāma pṛtsutīr martyānām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वाम्। अ॒ग्ने॒। वसु॑ऽपतिम्। वसू॑नाम्। अ॒भि। प्र। म॒न्दे॒। अ॒ध्व॒रेषु॑। रा॒ज॒न्। त्वया॑। वाज॑म्। वा॒ज॒ऽयन्तः॑। ज॒ये॒म॒। अ॒भि। स्या॒म॒। पृ॒त्सु॒तीः। मर्त्या॑नाम् ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:4» मन्त्र:1 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:18» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ग्यारह ऋचावाले चतुर्थ सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में राजविषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) बिजुली के सदृश विद्या से व्याप्त (राजन्) उत्तम गुणों से प्रकाशमान राजन् ! (अध्वरेषु) नहीं हिंसा करने योग्य प्रजापालन और न्यायव्यवहारों में (वसूनाम्) धनों के (वसुपतिम्) धनस्वामी (त्वाम्) आप को मैं (अभि, प्र, मन्दे) सब ओर से आनन्द देऊँ वा आनन्द देता हूँ और (त्वया) अधिष्ठातारूप आपके साथ (वाजम्) संग्राम को (वाजयन्त) करते वा कराते हुए हम लोग (मर्त्यानाम्) मरण धर्मवाले शत्रुओं की (पृत्सुतीः) सेनाओं को (अभि, जयेम) सब ओर से जीतें, इससे धन और यश से युक्त (स्याम) होवें ॥१॥
भावार्थभाषाः - जिनके अधिष्ठाता मुखिया धार्मिक और विद्वान् जन होवें, उनका सदा ही विजय, राज्य की वृद्धि और अतुल लक्ष्मी होती है ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजविषयमाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! राजन्नध्वरेषु वसूनां वसुपतिं त्वामहमभि प्र मन्दे। त्वया सह वाजं वाजयन्तो वयं मर्त्यानां पृत्सुतीरभि जयेमाऽनेन धनकीर्त्तियुक्ताः स्याम ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वाम्) (अग्ने) विद्युद्वद्व्याप्तविद्य (वसुपतिम्) धनस्वामिनम् (वसूनाम्) धनानाम् (अभि) (प्र) (मन्दे) आनन्दयेयमानन्दयामि वा (अध्वरेषु) अहिंसनीयेषु प्रजापालनन्यायव्यवहारेषु (राजन्) शुभगुणैः प्रकाशमान (त्वया) अधिष्ठात्रा (वाजम्) सङ्ग्रामम् (वाजयन्तः) कुर्वन्तः कारयन्तो वा (जयेम) (अभि) (स्याम) (पृत्सुतीः) सेनाः (मर्त्यानाम्) मरणधर्माणां शत्रूणाम् ॥१॥
भावार्थभाषाः - येषामधिष्ठातारो धार्मिका विद्वांसस्स्युस्तेषां सदैव विजयो राजवृद्धिरतुला श्रीश्च जायते ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात राजा व प्रजा यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - ज्यांचे अधिष्ठाते धार्मिक व विद्वान असतील तर त्यांचा नेहमी विजय होतो व राज्याची वृद्धी होऊन अमाप संपत्ती मिळते. ॥ १ ॥