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शुष्मा॑सो॒ ये ते॑ अद्रिवो मे॒हना॑ केत॒सापः॑। उ॒भा दे॒वाव॒भिष्ट॑ये दि॒वश्च॒ ग्मश्च॑ राजथः ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śuṣmāso ye te adrivo mehanā ketasāpaḥ | ubhā devāv abhiṣṭaye divaś ca gmaś ca rājathaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

शुष्मा॑सः। ये। ते॒। अ॒द्रि॒ऽवः॒। मे॒हना॑। के॒त॒ऽसापः॑ उ॒भा। दे॒वौ। अ॒भिष्ट॑ये। दि॒वः। च॒। ग्मः। च॒। रा॒ज॒थः॒ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:38» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:9» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राजप्रजाधर्मविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अद्रिवः) मेघों के सदृश पर्वत हैं जिसके राज्य में ऐसे राजन् ! जैसे (उभा) दोनों सूर्य और चन्द्रमा (देवौ) उत्तम गुण, कर्म्म और स्वभाववाले (दिवः) अन्तरिक्ष (च) और (ग्मः) पृथिवी के (च) भी मध्य में प्रकाशित हैं, वैसे (ये) जो (शुष्मासः) अधिक बलयुक्त (केतसापः) बुद्धि से सम्बन्ध रखनेवाले जन (ते) वे (अभिष्टये) इष्टसिद्धि के लिये (मेहना) वर्षण से प्रजाओं में हैं, वह प्रजा और आप निरन्तर (राजथः) प्रकाशित होते हैं ॥३॥
भावार्थभाषाः - जैसे सूर्य्य और चन्द्रमा सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करते हैं, वैसे ही प्रजा और राजा मिल के सम्पूर्ण राजधर्म्म को प्रकाशित करें ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजप्रजाधर्मविषयमाह ॥

अन्वय:

हे अद्रिवो राजन् ! यथोभा सूर्य्याचन्द्रमसौ देवौ दिवश्च ग्मश्च मध्ये राजेते तथा ये शुष्मासः केतसापस्तेऽभिष्टये मेहना प्रजासु सन्ति सा प्रजा त्वं च सततं राजथः ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (शुष्मासः) अतिबलवन्तः (ये) (ते) (अद्रिवः) अद्रयो मेघा इव शैला वर्त्तन्ते यस्य राज्ये तत्सम्बुद्धौ (मेहना) वर्षणेन (केतसापः) ये केतेन प्रज्ञया सपन्ति ते (उभा) उभौ (देवौ) दिव्यगुणकर्मस्वभावौ (अभिष्टये) इष्टसिद्धये (दिवः) अन्तरिक्षस्य (च) (ग्मः) पृथिव्याः (च) (राजथः) प्रकाशेते ॥३॥
भावार्थभाषाः - यथा सूर्य्याचन्द्रमसौ सर्वं जगत्प्रकाशयतस्तथैव प्रजाराजानौ मिलित्वा सर्वं राजधर्म्मं दीपयेताम् ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - भावार्थर् - जसे सूर्य व चन्द्र संपूर्ण जगाला प्रकाशित करतात तसेच प्रजा व राजा यांनी मिळून संपूर्ण राज्यधर्म प्रकट करावा. ॥ ३ ॥