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सं भा॒नुना॑ यतते॒ सूर्य॑स्या॒जुह्वा॑नो घृ॒तपृ॑ष्ठः॒ स्वञ्चाः॑। तस्मा॒ अमृ॑ध्रा उ॒षसो॒ व्यु॑च्छा॒न्य इन्द्रा॑य सु॒नवा॒मेत्याह॑ ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sam bhānunā yatate sūryasyājuhvāno ghṛtapṛṣṭhaḥ svañcāḥ | tasmā amṛdhrā uṣaso vy ucchān ya indrāya sunavāmety āha ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सम्। भा॒नुना॑। य॒त॒ते॒। सूर्य॑स्य। आ॒ऽजुह्वा॑नः। घृ॒तऽपृ॑ष्ठः। सु॒ऽअञ्चाः॑। तस्मै॑। अमृ॑ध्राः। उ॒षसः॑। वि। उ॒च्छा॒न्। यः। इन्द्रा॑य। सु॒नवा॑म। इति॑। आह॑ ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:37» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:8» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब पाँच ऋचावाले सैंतीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में इन्द्रविषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यः) जो (आजुह्वानः) आह्वान किया गया (घृतपृष्ठः) जल जिसके पीठ पर ऐसा (स्वञ्चाः) उत्तम प्रकार चलनेवाला अग्नि (सूर्य्यस्य) सूर्य्य की (भानुना) किरण से (सम्) उत्तम प्रकार (यतते) प्रयत्न करता और जो (अमृध्राः) नहीं हिंसा करनेवाली (उषसः) प्रभातवेलाओं को (वि, उच्छान्) वसावे और जो इस विद्या को जानता है (तस्मै) उस (इन्द्राय) ऐश्वर्ययुक्त जन के लिये जो (आह) उपदेश देता है (इति) इस प्रकार हम लोग उसको (सुनवाम) उत्पन्न करें ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो बिजुली, सूर्य्य के प्रकाश के साथ वर्त्तमान है, उसको आदि लेकर विद्या का जो उपदेश देवे, वह हम लोगों की उन्नति करनेवाला होता है, यह हम लोग जानें ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेन्द्रविषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! य आजुह्वानो घृतपृष्ठः स्वञ्चा अग्निः सूर्य्यस्य भानुना सं यतते योऽमृध्रा उषसो व्युच्छान् य एतद्विद्यां जानाति तस्मा इन्द्राय य आहेति वयं तं सुनवाम ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सम्) (भानुना) किरणेन (यतते) (सूर्य्यस्य) (आजुह्वानः) कृताह्वानः (घृतपृष्ठः) घृतमुदकं पृष्ठे यस्य सः (स्वञ्चाः) यः सुष्ठ्वञ्चति (तस्मै) (अमृध्राः) अहिंसिकाः (उषसः) प्रभातवेलाः (वि) (उच्छान्) विवासयेत् (यः) (इन्द्राय) ऐश्वर्य्ययुक्ताय जनाय (सुनवाम) निष्पादयेत् (इति) (आह) उपदिशति ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! या विद्युत्सूर्य्यप्रकाशेन सह वर्त्तते तदादिविद्यां य उपदिशेत् सोऽस्माकमुन्नतिकरो भवतीति वयं विजानीमः ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात इंद्र, शिल्पी, विद्वान व युवावस्थेत विवाहाचे वर्णन तात्काळ वाहन चालविणे व विद्युत विद्येचे वर्णन केलेले आहे. यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची यापूर्वीच्या सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - भावार्थर् - हे माणसांनो! जी विद्युत सूर्याच्या प्रकाशाबरोबर असते त्या मूळ विद्येचा उपदेश आपली उन्नती करणारा असतो हे आपण जाणले पाहिजे. ॥ १ ॥