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स आ ग॑म॒दिन्द्रो॒ यो वसू॑नां॒ चिके॑त॒द्दातुं॒ दाम॑नो रयी॒णाम्। ध॒न्व॒च॒रो न वंस॑गस्तृषा॒णश्च॑कमा॒नः पि॑बतु दु॒ग्धमं॒शुम् ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa ā gamad indro yo vasūnāṁ ciketad dātuṁ dāmano rayīṇām | dhanvacaro na vaṁsagas tṛṣāṇaś cakamānaḥ pibatu dugdham aṁśum ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। आ। ग॒म॒त्। इन्द्रः॑। यः। वसू॑नाम्। चिके॑तत्। दातु॑म्। दाम॑नः। र॒यी॒णाम्। ध॒न्व॒ऽच॒रः। न। वंस॑गः। तृ॒षा॒णः। च॒क॒मा॒नः। पि॒ब॒तु॒। दु॒ग्धम्। अं॒शुम् ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:36» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:7» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब छः ऋचावाले छत्तीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में इन्द्रपदवाच्य राजविषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यः) जो (इन्द्रः) दाता (वसूनाम्) द्रव्यों के (दातुम्) देने को (चिकेतत्) जानता और (रयीणाम्) धनों की (दामनः) देनेवालियों को जानता है (सः) वह (तृषाणः) पिपासा से व्याकुल के सदृश और (धन्वचरः) अन्तरिक्ष में चलनेवाले के (न) सदृश (वंसगः) सत्य और असत्य के विभाग करनेवालों को प्राप्त होनेवाला और (चकमानः) कामना करता हुआ हम लोगों को (आ) सब प्रकार से (गमत्) प्राप्त होवे और (अंशुम्) प्राणों के देनेवाले (दुग्धम्) दुग्ध का (पिबतु) पान करे ॥१॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि जो धन देने, विचार करने, सत्य की कामना करने और मर्य्यादा को चाहनेवाला होवे, उसी को राजा मानें ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेन्द्रपदवाच्यराजविषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! य इन्द्रो वसूनां दातुं चिकेतद्रयीणां दामनश्चिकेतत्स तृषाणो धन्वचरो न वंसगश्चकमानोऽस्माना गमदंशुं दुग्धं पिबतु ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (आ) समन्तात् (गमत्) गच्छेत् (इन्द्रः) दाता (यः) (वसूनाम्) द्रव्याणाम् (चिकेतत्) जानाति (दातुम्) (दामनः) दात्रीः (रयीणाम्) (धन्वचरः) यो धन्वन्यन्तरिक्षे चरति (न) इव (वंसगः) यो वंसान् सत्याऽसत्यविभाजकान् गच्छति (तृषाणः) तृषातुर इव (चकमानः) कामयमानः (पिबतु) (दुग्धम्) (अंशुम्) प्राणप्रदम् ॥१॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्यो धनप्रदो विवेचकः सत्यं कामयमान इष्टमर्य्यादो जनो भवेत् स एव राजा भावनीयः ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात इंद्र, विद्वान व शिल्पी यांच्या कृत्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची यापूर्वीच्या सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जो धन देणारा, विचार करणारा, सत्याची इच्छा करणारा व मर्यादा पाळणारा असेल त्यालाच माणसांनी राजा मानावे. ॥ १ ॥