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अ॒स्माक॑मिन्द्र दु॒ष्टरं॑ पुरो॒यावा॑नमा॒जिषु॑। स॒यावा॑नं॒ धने॑धने वाज॒यन्त॑मवा॒ रथ॑म् ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asmākam indra duṣṭaram puroyāvānam ājiṣu | sayāvānaṁ dhane-dhane vājayantam avā ratham ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒स्माक॑म्। इ॒न्द्र॒। दु॒स्तर॑म्। पु॒रः॒ऽयावा॑नम्। आ॒जिषु॑। स॒ऽयावा॑नम्। धने॑ऽधने। वाज॒ऽयन्त॑म्। अ॒व॒। रथ॑म् ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:35» मन्त्र:7 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:6» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर प्रजाविषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) राजन् ! आप (अस्माकम्) हम लोगों के (दुष्टरम्) शत्रुओं से दुःख से पार होने योग्य (पुरोयावानम्) नगर को चलते हुए (आजिषु) संग्रामों में (धनेधने) धन-धन में (सयावानम्) सेना आदि के साथ चलते हुए (वाजयन्तम्) किया अन्वेक्षण जिसका ऐसे (रथम्) सुन्दर वाहन की (अवा) रक्षा करो ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! जो आप लोग हम लोगों के नगर और राज्य की यथावत् रक्षा करने को समर्थ होवें तो हम लोगों के राजा होवें ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः प्रजाविषयमाह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! त्वमस्माकं दुष्टरं पुरोयावानमाजिषु धनेधने सयावानं वाजयन्तं रथञ्चाऽवा ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्माकम्) (इन्द्र) राजन् (दुष्टरम्) शत्रुभिर्दुःखेन तरितुं योग्यम् (पुरोयावानम्) नगरम् यान्तम् (आजिषु) सङ्ग्रामेषु (सयावानम्) सेनादिना सह गच्छन्तम् (धनेधने) (वाजयन्तम्) कृताऽन्वेक्षणम् (अवा) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (रथम्) रमणीयं यानम् ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! यदि त्वमस्माकं पुरं राष्ट्रं च यथावद्रक्षितुं शक्नुयास्तर्ह्यस्माकं राजा भव ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा! तू आमच्या नगर व राज्याचे रक्षण यथायोग्य करण्यास समर्थ असल्यास आमचा राजा हो. ॥ ७ ॥