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वि॒त्वक्ष॑णः॒ समृ॑तौ चक्रमास॒जोऽसु॑न्वतो॒ विषु॑णः सुन्व॒तो वृ॒धः। इन्द्रो॒ विश्व॑स्य दमि॒ता वि॒भीष॑णो यथाव॒शं न॑यति॒ दास॒मार्यः॑ ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vitvakṣaṇaḥ samṛtau cakramāsajo sunvato viṣuṇaḥ sunvato vṛdhaḥ | indro viśvasya damitā vibhīṣaṇo yathāvaśaṁ nayati dāsam āryaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वि॒ऽत्वक्ष॑णः। सम्ऽऋ॑तौ। च॒क्रऽआ॒स॒जः। असु॑न्वतः। विषु॑णः। सु॒न्व॒तः। वृ॒धः। इन्द्रः॑। विश्व॑स्य। द॒मि॒ता। वि॒ऽभीष॑णः। य॒था॒ऽव॒शम्। न॒य॒ति॒। दास॑म्। आर्यः॑ ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:34» मन्त्र:6 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:4» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब इन्द्र के सादृश्य से राजगुणों को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (वृधः) बढ़ानेवाला (इन्द्रः) बिजुली के सदृश राजा (विश्वस्य) सम्पूर्ण जगत् का (दमिता) दमन करने और (विभीषणः) भय देनेवाला है, वैसे (वित्वक्षणः) विशेष करके दुःख का नाश करनेवाला (समृतौ) संग्राम में (चक्रमासजः) कालरूप चक्र के महीनों से उत्पन्न हुआ जन (विषुणः) विद्या में व्याप्त और (सुन्वतः) यज्ञ करने और (असुन्वतः) नहीं यज्ञ करनेवाले का दमन करनेवाला होता हुआ (आर्यः) ब्राह्मण, क्षत्रिय वा वैश्य वर्ण आर्य्य राजा (यथावशम्) यथाशक्ति (दासम्) सेवक शूद्र को (नयति) प्राप्त करता है ॥६॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जैसे ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य आर्यों तथा उत्तम गुण, कर्म्म और स्वभाववालों का शूद्र सेवक होता है, वैसे ही उत्तम गुण और कर्म्म से युक्त राजा की प्रजा सेवन करनेवाली होती है ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेन्द्रसादृश्येन राजगुणानाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यथा वृधः इन्द्रो विश्वस्य दमिता विभीषणोऽस्ति तथा वित्वक्षणः समृतौ चक्रमासजो विषुणः सुन्वतोऽसुन्वतश्च दमिता सन्नार्यो राजा यथावशं दासं नयति ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वित्वक्षणः) विशेषेण दुःखस्य विच्छेता (समृतौ) संग्रामे (चक्रमासजः) यो चक्रस्य मासकालस्य मासास्तेभ्यो जातः (असुन्वतः) अयजमानस्य (विषुणः) व्याप्तविद्यस्य (सुवन्तः) यज्ञं कुर्वतः (वृधः) वर्धकः (इन्द्रः) विद्युदिव राजा (विश्वस्य) सर्वस्य जगतः (दमिता) (विभीषणः) भयप्रदः (यथावशम्) वशमनतिक्रम्य करोति (नयति) (दासम्) सेवकं शूद्रम् (आर्यः) ब्राह्मणक्षत्रियवैश्यवर्णः ॥६॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा ब्राह्मणक्षत्रियवैश्यानामार्याणां शुभगुणकर्म्मयुक्तानां शूद्रः सेवको भवति तथा शुभगुणकर्मयुक्तस्य राज्ञः प्रजा सेविका भवति ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, आर्य या उत्तम गुण, कर्म, स्वभाव असणाऱ्यांचा शूद्र हा सेवक असतो. तसेच उत्तम गुण व कर्माने युक्त राजाची प्रजा सेवक असते. ॥ ६ ॥