अजा॑तशत्रुम॒जरा॒ स्व॑र्व॒त्यनु॑ स्व॒धामि॑ता द॒स्ममी॑यते। सु॒नोत॑न॒ पच॑त॒ ब्रह्म॑वाहसे पुरुष्टु॒ताय॑ प्रत॒रं द॑धातन ॥१॥
ajātaśatrum ajarā svarvaty anu svadhāmitā dasmam īyate | sunotana pacata brahmavāhase puruṣṭutāya prataraṁ dadhātana ||
अजा॑तऽशत्रुम्। अ॒जरा॑। स्वः॑ऽवती। अनु॑। स्व॒धा। अमि॑ता। द॒स्मम्। ई॒य॒ते॒। सु॒नोत॑न। पच॑त। ब्रह्म॑ऽवाहसे। पु॒रु॒ऽस्तु॒ताय॑। प्र॒ऽत॒रम्। द॒धा॒त॒न॒ ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब नव ऋचावाले चौंतीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में इन्द्रगुणयुक्त स्त्री-पुरुष का वर्णन करते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथेन्द्रगुणयुक्तदम्पतीविषयमाह ॥
हे मनुष्या ! स्वर्वत्यमिता स्वधाजरा युवतिः स्त्री यमजातशत्रुं दस्ममन्वीयते तस्मै पुरुष्टुताय ब्रह्मवाहसे जनाय प्रतरं सुनोतन उत्तममन्नं पचत धनादिकं दधातन ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात इंद्र, विद्वान व प्रजेचे गुण यांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची या पूर्वीच्या सुक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.