महि॑ म॒हे त॒वसे॑ दीध्ये॒ नॄनिन्द्रा॑ये॒त्था त॒वसे॒ अत॑व्यान्। यो अ॑स्मै सुम॒तिं वाज॑सातौ स्तु॒तो जने॑ सम॒र्य॑श्चि॒केत॑ ॥१॥
mahi mahe tavase dīdhye nṝn indrāyetthā tavase atavyān | yo asmai sumatiṁ vājasātau stuto jane samaryaś ciketa ||
महि॑। म॒हे। त॒वसे॑। दी॒ध्ये॒। नॄन्। इन्द्रा॑य। इ॒त्था। त॒वसे॑। अत॑व्यान्। यः। अ॒स्मै॒। सु॒ऽम॒तिम्। वाज॑ऽसातौ। स्तु॒तः। जने॑। स॒ऽम॒र्यः॑। चि॒केत॑ ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब दूसरे अध्याय का प्रारम्भ है। दश ऋचावाले तेतीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में इन्द्र के गुण को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथेन्द्रगुणानाह ॥
हे मनुष्या ! योऽतव्याँ स्तुतो जने समर्यो वाजसातौ सुमतिं महे तवसे चिकेतास्मै तवसे इन्द्रायेत्था महि नॄनहं दीध्ये ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात इन्द्र व विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची यापूर्वीच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.