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को अ॑स्य॒ शुष्मं॒ तवि॑षीं वरात॒ एको॒ धना॑ भरते॒ अप्र॑तीतः। इ॒मे चि॑दस्य॒ ज्रय॑सो॒ नु दे॒वी इन्द्र॒स्यौज॑सो भि॒यसा॑ जिहाते ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ko asya śuṣmaṁ taviṣīṁ varāta eko dhanā bharate apratītaḥ | ime cid asya jrayaso nu devī indrasyaujaso bhiyasā jihāte ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कः। अ॒स्य॒। शुष्म॑म्। तवि॑षीम्। व॒रा॒ते॒। एकः॑। धना॑। भ॒र॒ते॒। अप्र॑तिऽइतः। इ॒मे इति॑। चि॒त्। अ॒स्य॒। ज्रय॑सः। नु। दे॒वी इति॑। इन्द्र॑स्य। ओज॑सः। भि॒यसा॑। जि॒हा॒ते॒ इति॑ ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:32» मन्त्र:9 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:33» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:2» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् जनो ! (कः) कौन (अस्य) इसके (शुष्मम्) बल को और (तविषीम्) सेना को धारण करे और (इमे) ये (देवी) प्रकाशमान दो अग्नि (इन्द्रस्य) बिजुली के (ओजसः) बल के (भियसा) धारण से (नु) शीघ्र (जिहाते) चलते हैं, इन दोनों के मध्य में (एकः) एक तो (धना) धनों को (भरते) धारण करता है और दूसरा (अप्रतीतः) नहीं प्रत्यक्ष हुआ (अस्य) इसके (चित्) भी (ज्रयसः) वेगवान् का धारण करनेवाला वर्त्तमान है, वे ये दोनों सब को (वराते) स्वीकार को प्राप्त होवें, क्योंकि ये सब पदार्थ उन दोनों से धारण किये गये हैं ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो दो प्रकार का अग्नि-एक तो प्रसिद्ध सूर्य्य पृथ्वी में प्रसिद्धरूप और दूसरा गुप्त बिजुलीरूप ये ही दोनों सब जगत् को धारण करके चलाते हैं ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसः ! कोऽस्य शुष्मन्तविषीं धरेदिमे देवी इन्द्रस्यौजसो भियसा नु जिहाते। अनयोरेको धना भरतेऽपरोऽप्रतीतोऽस्य चिज्ज्रयसो धर्त्ता वर्त्तते ताविमौ सर्वं वराते [यतो हि] इमे सर्वे ताभ्यां धृताः सन्ति ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कः) (अस्य) (शुष्मम्) बलम् (तविषीम्) सेनाम् (वराते) वृणुयाताम् (एकः) (धना) धनानि (भरते) (अप्रतीतः) अप्रत्यक्षः (इमे) (चित्) (अस्य) (ज्रयसः) (नु) (देवी) देदीप्यमाने (इन्द्रस्य) विद्युतः (ओजसः) बलस्य (भियसा) धारणेन (जिहाते) गच्छतः ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यो द्विविधोऽग्निरेकः प्रसिद्धः सूर्य्यभौमरूपो द्वितीयो गुप्तो विद्युद्रूप इमावेव सर्वं जगद्धृत्वा गमयतः ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जे दोन प्रकारचे अग्नी असतात त्यापैकी पृथ्वीवर एक प्रसिद्ध सूर्य असून दुसरा गुप्त विद्युतरूपाने असतो. ते दोन्ही सर्व जगाला धारण करून चालतात. ॥ ९ ॥