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देवता: इन्द्र: ऋषि: अमहीयुः छन्द: त्रिष्टुप् स्वर: धैवतः

प्र ते॒ पूर्वा॑णि॒ कर॑णानि वोचं॒ प्र नूत॑ना मघव॒न्या च॒कर्थ॑। शक्ती॑वो॒ यद्वि॒भरा॒ रोद॑सी उ॒भे जय॑न्न॒पो मन॑वे॒ दानु॑चित्राः ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra te pūrvāṇi karaṇāni vocam pra nūtanā maghavan yā cakartha | śaktīvo yad vibharā rodasī ubhe jayann apo manave dānucitrāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। ते॒। पूर्वा॑णि॒। कर॑णानि। वो॒च॒म्। प्र। नूत॑ना। म॒घ॒ऽव॒न्। या। च॒कर्थ॑। शक्ति॑ऽवः। यत्। वि॒ऽभराः॑। रोद॑सी॒ इति॑। उ॒भे इति॑। जय॑न्। अ॒पः। म॑नवे। दानु॑ऽचित्राः ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:31» मन्त्र:6 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:30» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:2» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वानों के गुणों को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (शक्तीवः) बहुत प्रकार की सामर्थ्य से युक्त (मघवन्) श्रेष्ठ ऐश्वर्य्यवाले राजन् ! बुद्धिमान् जन (यत्) जैसे (या) जिन (पूर्वाणि) प्राचीन (करणानि) साधनों और जिन (नूतना) नवीनों को (प्र) सिद्ध करते हैं, उन साधनों का मैं (ते) आपके लिये वैसे (प्र, वोचम्) उपदेश करूँ और जो (विभराः) विशेष करके पोषण करने और (दानुचित्राः) अद्भुत दानवाले विद्वान् जन (मनवे) मनुष्य के लिये (उभे) दोनों (रोदसी) अन्तरिक्ष और पृथिवी को जनाते हैं, उनके साथ आप मनुष्य के लिये (अपः) सूर्य्य जैसे जलों को वैसे शत्रुओं के प्राणों को (जयन्) जीतते हुए उनके सुख के लिये सत्कार को (चकर्थ) करते हैं ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे राजा आदि जनो ! जो विद्वान् जन आप लोगों के लिये अनादिकाल से सिद्ध राजनीति और विजय के उपायों की शिक्षा करें, उनको अपने आत्मा के सदृश आप लोग सत्कार करें ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वद्गुणानाह ॥

अन्वय:

हे शक्तीवो मघवन् राजन् ! विपश्चितो यद्या पूर्वाणि करणानि या नूतना प्र साध्नुवन्ति तान्यहं ते तथा प्र वोचं ये विभरा दानुचित्रा विद्वांसो मनव उभे रोदसी विज्ञापयन्ति तैः सह त्वं मनवेऽपो जयँस्तेषां सुखाय सत्कारं चकर्थ ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (ते) तुभ्यम् (पूर्वाणि) प्राचीनानि (करणानि) कुर्वन्ति यैस्तानि साधनानि (वोचम्) उपदिशेयम् (प्र) (नूतना) नवीनानि (मघवन्) पूजितैश्वर्य (या) यानि (चकर्थ) करोषि (शक्तीवः) शक्तिर्बहुविधं सामर्थ्यं विद्यते यस्य तत्सम्बुद्धौ (यत्) यथा (विभराः) ये विशेषेण विभरन्ति पोषयन्ति ते (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (उभे) (जयन्) (अपः) सूर्यो जलानीव शत्रुप्राणान् (मनवे) मनुष्याय (दानुचित्राः) चित्राण्यद्भुतानि दानानि येषान्ते ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे राजादयो जना ! ये विद्वांसो युष्मान् सनातनीं राजनीतिं विजयोपायाँश्च शिक्षेरँस्तान् स्वात्मवद्भवन्तः सत्कुर्वन्तु ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजजनांनो! जे विद्वान तुमच्यासाठी सनातन राजनीती व विजयाचे उपाय सुचवितात त्यांचा तुम्ही आपल्या आत्म्याप्रमाणे सत्कार करा. ॥ ६ ॥