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ए॒वाँ अ॒ग्निं व॑सू॒यवः॑ सहसा॒नं व॑वन्दिम। स नो॒ विश्वा॒ अति॒ द्विषः॒ पर्ष॑न्ना॒वेव॑ सु॒क्रतुः॑ ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

evām̐ agniṁ vasūyavaḥ sahasānaṁ vavandima | sa no viśvā ati dviṣaḥ parṣan nāveva sukratuḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए॒व। अ॒ग्निम्। व॒सु॒ऽयवः॑। स॒ह॒सा॒नम्। व॒व॒न्दि॒म॒। सः। नः॒। विश्वाः॑। अति॑। द्विषः॑। पर्ष॑त्। ना॒वाऽइ॑व। सु॒ऽक्रतुः॑ ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:25» मन्त्र:9 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:18» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:2» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वद्विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! (वसूयवः) अपने धन की इच्छा करते हुए हम लोग (अग्निम्) बिजुली के सदृश तेजस्वी विद्वान् और (सहसानम्) सबको सहनेवाले आपकी (ववन्दिम) प्रशंसा करें (सः, एवा) वही (सुक्रतुः) उत्तम बुद्धि वा उत्तम कर्मों से युक्त आप (नावेव) जैसे नौका से समुद्र के वैसे (न) हम लोगों की (विश्वाः) सम्पूर्ण (द्विषः) द्वेषयुक्त क्रियाओं के (अति, पर्षत्) पार करें ॥९॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे बड़ी नौका से समुद्र आदि के पार सुखपूर्वक जाते हैं, वैसे ही विद्वानों के सङ्ग से सब दोषों से साधारणापन से दूर को प्राप्त होते हैं ॥९॥ इस सूक्त में अग्नि और विद्वानों के गुणों का वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह पच्चीसवाँ सूक्त और अठारहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥

अन्वय:

हे विद्वन् ! वसूयवो वयमग्निमिव सहसानं त्वां ववन्दिम स एवा सुक्रतुर्भवान्नावेव नो विश्वा द्विषोऽति पर्षत् ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (एवा) निश्चये (अग्निम्) विद्युतमिव विद्वांसम् (वसूयवः) आत्मनो वस्विच्छवः (सहसानम्) यः सर्वं सहते तम् (ववन्दिम) प्रशंसेम (सः) (नः) अस्माकम् (विश्वाः) समग्राः (अति) (द्विषः) द्वेषयुक्ताः क्रियाः (पर्षत्) पारयेत् (नावेव) यथा नौकया समुद्रम् (सुक्रतुः) सुष्ठुप्रज्ञः सुकर्मा वा ॥९॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । यथा महत्या नौकया समुद्रादिपारं सुखेन गच्छन्ति तथैव विद्वत्सङ्गेन सर्वेभ्यो दोषेभ्यस्सहजतया दूरं प्राप्नुवन्तीति ॥९॥ अत्राग्निविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति पञ्चविंशतितमं सूक्तमष्टादशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे मोठ्या नौकेने समुद्र इत्यादींच्या पलीकडे सुखपूर्वक जाता येते तसेच विद्वानांच्या संगतीने सर्व दोषांपासून सहजपणे दूर होता येते. ॥ ९ ॥