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तव॑ द्यु॒मन्तो॑ अ॒र्चयो॒ ग्रावे॑वोच्यते बृ॒हत्। उ॒तो ते॑ तन्य॒तुर्य॑था स्वा॒नो अ॑र्त॒ त्मना॑ दि॒वः ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tava dyumanto arcayo grāvevocyate bṛhat | uto te tanyatur yathā svāno arta tmanā divaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तव॑। द्यु॒ऽमन्तः॑। अ॒र्चयः॑। ग्रावा॑ऽइव। उ॒च्य॒ते॒। बृ॒हत्। उ॒तो इति॑। ते॒। त॒न्य॒तुः। य॒था॒। स्वा॒नः। अ॒र्त॒। त्मना॑। दि॒वः ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:25» मन्त्र:8 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:18» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:2» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब मेघदृष्टान्त से विद्वद्विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! (तव) आपके (द्युमन्तः) बहुत प्रकाशवाली (अर्चयः) किरणें हैं उनसे जो (ग्रावेव) मेघ के सदृश (बृहत्) बहुत सत्य (उच्यते) कहा जाता (उतो) और (ते) आपका (यथा) जैसे (तन्यतुः) बिजुली वैसे (स्वानः) शब्द वर्त्तमान है, इस कारण (त्मना) आत्मा से (दिवः) प्रकाशयुक्त पदार्थों को तुम सब लोग (अर्त्त) प्राप्त होओ ॥८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो मेघ के सदृश गम्भीर शब्द से गूढ़ अर्थों के उपदेश देते और बिजुली के सदृश पुरुषार्थ करते हैं, वे सम्पूर्ण सुखों को प्राप्त होते हैं ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ मेघदृष्टान्तेन विद्वद्विषयमाह ॥

अन्वय:

हे विद्वँस्तव द्युमन्तो येऽर्चयः सन्ति ताभिर्यद् ग्रावेव बृहदुच्यते उतो ते यथा तन्यतुस्तथा स्वानो वर्त्तते ततस्त्मना दिवो यूयं सर्वेऽर्त्त ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तव) (द्युमन्तः) बहुप्रकाशवन्तः (अर्चयः) किरणाः (ग्रावेव) मेघ इव (उच्यते) (बृहत्) महत्सत्यम् (उतो) अपि (ते) तव (तन्यतुः) विद्युत् (यथा) (स्वानः) शब्दः (अर्त्त) प्राप्नुत (त्मना) आत्मना (दिवः) कामयमानान् पदार्थान् ॥८॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । ये मेघवद् गम्भीरशब्देन गूढार्थानुपविशन्ति विद्युद्वत्पुरुषार्थयन्ति ते सर्वाणि सुखानि लभन्ते ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे मेघाप्रमाणे गंभीर शब्दाने गूढ अर्थांचा उपदेश करतात व विद्युतप्रमाणे पुरुषार्थ करतात ते संपूर्ण सुखी होतात. ॥ ८ ॥