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विश्वे॒ हि त्वा॑ स॒जोष॑सो॒ जना॑सो वृ॒क्तब॑र्हिषः। होता॑रं॒ सद्म॑सु प्रि॒यं व्यन्ति॒ वार्या॑ पु॒रु ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

viśve hi tvā sajoṣaso janāso vṛktabarhiṣaḥ | hotāraṁ sadmasu priyaṁ vyanti vāryā puru ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

विश्वे॑। हि। त्वा॒। स॒ऽजोष॑सः। जना॑सः। वृ॒क्तऽब॑र्हिषः। होतार॑म्। सद्म॑ऽसु। प्रि॒यम्। व्यन्ति॑। वार्या॑। पु॒रु ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:23» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:15» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:2» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वीर गुणों को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! जो (विश्वे) सम्पूर्ण (सजोषसः) तुल्य प्रीति के सेवनेवाले (जनासः) प्रसिद्ध उत्तम आचरणों से युक्त (वृक्तबर्हिषः) अग्निहोत्र करनेवाले और यज्ञ करनेवाले के सदृश सम्पूर्ण विद्याओं में कुशल जन (हि) ही (सद्मसु) राजगृहों अर्थात् राजदर्बारों में (होतारम्) दाता और (प्रियम्) सुन्दर (त्वा) आपका आश्रय करते हैं, वे (पुरु) बहुत (वार्य्या) स्वीकार करने योग्य धन आदिकों को (व्यन्ति) प्राप्त होते हैं ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । हे राजन् ! जो राज्य की उन्नति में प्रीति करनेवाले और धर्म्मिष्ठ भृत्य आपको प्राप्त होवें, उन सबका सत्कार करके निरन्तर रक्षा करो ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्वीरगुणानाह ॥

अन्वय:

हे राजन् ! ये विश्वे सजोषसो जनासो वृक्तबर्हिषो इव हि सद्मसु होतारं प्रियं त्वाश्रयन्ति ते पुरु वार्य्या व्यन्ति ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वे) सर्वे (हि) (त्वा) त्वाम् राजानम् (सजोषसः) समानप्रीतिसेवनाः (जनासः) प्रसिद्धशुभाचरणाः (वृक्तबर्हिषः) श्रोत्रिया ऋत्विज इव सर्वविद्यासु कुशलाः (होतारम्) दातारम् (सद्मसु) राजगृहेषु (प्रियम्) कमनीयम् (व्यन्ति) प्राप्नुवन्ति (वार्य्या) वर्त्तुमर्हाणि धनादीनि (पुरु) बहूनि ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । हे राजन् ! ये राज्योन्नतिप्रिया धर्म्मिष्ठा भृत्यास्त्वां प्राप्नुयुस्तान् सर्वान् सत्कृत्य सततं रक्षेः ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा ! राज्याची उन्नती करणारे धार्मिक सेवक तुला प्राप्त झाले तर सर्वांचा सत्कार करून निरंतर रक्षण कर. ॥ ३ ॥