प्र वि॑श्वसामन्नत्रि॒वदर्चा॑ पाव॒कशो॑चिषे। यो अ॑ध्व॒रेष्वीड्यो॒ होता॑ म॒न्द्रत॑मो वि॒शि ॥१॥
pra viśvasāmann atrivad arcā pāvakaśociṣe | yo adhvareṣv īḍyo hotā mandratamo viśi ||
प्र। वि॒श्व॒ऽसा॒म॒न्। अ॒त्रि॒ऽवत्। अर्च॑। पा॒व॒कऽशो॑चिषे। यः। अ॒ध्व॒रेषु॑। ईड्यः॑। होता॑। म॒न्द्रऽत॑मः। वि॒शि ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब चार ऋचावाले बाईसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अग्निविषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथाग्निविषयमाह ॥
हे विश्वसामन् ! योऽध्वरेष्वीड्यो होता विशि मन्द्रतमो भवेत् तस्मै पावकशोचिषेऽत्रिवत् प्रार्चा ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात अग्नीच्या गुणाचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची या पूर्वीच्या सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी. ॥