प्र वे॒धसे॑ क॒वये॒ वेद्या॑य॒ गिरं॑ भरे य॒शसे॑ पू॒र्व्याय॑। घृ॒तप्र॑सत्तो॒ असु॑रः सु॒शेवो॑ रा॒यो ध॒र्ता ध॒रुणो॒ वस्वो॑ अ॒ग्निः ॥१॥
pra vedhase kavaye vedyāya giram bhare yaśase pūrvyāya | ghṛtaprasatto asuraḥ suśevo rāyo dhartā dharuṇo vasvo agniḥ ||
प्र। वे॒धसे॑। क॒वये॑। वेद्या॑य। गिर॑म्। भ॒रे॒। य॒शसे॑। पू॒र्व्याय॑। घृ॒तऽप्र॑सत्तः। असु॑रः। सु॒ऽशेवः॑। रा॒यः। ध॒र्ता। ध॒रुणः॑। वस्वः॑। अ॒ग्निः ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब पाँच ऋचावाले पन्द्रहवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में विद्वान् और अग्निगुणविषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ विद्वदग्निगुणविषयमाह ॥
हे विद्वांसो ! यथा मया घृतप्रसत्तोऽसुरः सुशेवो रायो धर्त्ता वस्वो धरुणोऽग्निर्ध्रियते तद्बोधाय कवये वेद्याय यशसे पूर्व्याय वेधसे गिरं प्र भरे तथा यूयमप्येनमेतदर्थं धरत ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात विद्वान व अग्नी यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.