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अ॒ग्निं स्तोमे॑न बोधय समिधा॒नो अम॑र्त्यम्। ह॒व्या दे॒वेषु॑ नो दधत् ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agniṁ stomena bodhaya samidhāno amartyam | havyā deveṣu no dadhat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒ग्निम्। स्तोमे॑न। बो॒ध॒य॒। स॒म्ऽइ॒धा॒नः। अम॑र्त्यम्। ह॒व्या। दे॒वेषु॑। नः॒। द॒ध॒त् ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:14» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:6» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब छः ऋचावाले चौदहवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अग्निगुणों को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! जो (समिधानः) उत्तम प्रकार स्वयं प्रकाशमान अग्नि (देवेषु) विद्वानों वा श्रेष्ठ गुणोंवाले पदार्थों में (नः) हम लोगों के लिये (हव्या) देने और ग्रहण करने योग्य वस्तुओं को (दधत्) धारण करता है, उस (अमर्त्यम्) मरणधर्म से रहित (अग्निम्) अग्नि को (स्तोमेन) गुणों की प्रशंसा से (बोधय) प्रकाशित कीजिये ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! प्रयत्न से अग्नि आदि पदार्थों की विद्या को प्राप्त होओ ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाग्निगुणानाह ॥

अन्वय:

हे विद्वन् ! यस्समिधानोऽग्निर्देवेषु नो हव्या दधत् तममर्त्यमग्निं स्तोमेन बोधय ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्निम्) (स्तोमेन) गुणप्रशंसनेन (बोधय) प्रदीपय (समिधानः) सम्यक् स्वयं प्रकाशमानः (अमर्त्यम्) मरणधर्मरहितम् (हव्या) दातुमादातुमर्हाणि वस्तूनि (देवेषु) विद्वत्सु दिव्यगुणपदार्थेषु वा (नः) अस्मभ्यम् (दधत्) दधाति ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! प्रयत्नेनाऽग्न्यादिपदार्थविद्यां प्राप्नुत ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात अग्नीच्या गुणाचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! प्रयत्नपूर्वक अग्नी इत्यादी पदार्थांची विद्या प्राप्त करा. ॥ १ ॥