अर्च॑न्तस्त्वा हवाम॒हेऽर्च॑न्तः॒ समि॑धीमहि। अग्ने॒ अर्च॑न्त ऊ॒तये॑ ॥१॥
arcantas tvā havāmahe rcantaḥ sam idhīmahi | agne arcanta ūtaye ||
अर्च॑न्तः। त्वा॒। ह॒वा॒म॒हे॒। अर्च॑न्तः। सम्। इ॒धी॒म॒हि॒। अग्ने॑। अर्च॑न्तः। ऊ॒तये॑ ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब छः ऋचावाले तेरहवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अग्निपदवाच्य विद्वान् के गुणों को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथाग्निपदवाच्यविद्वद्गुणानाह ॥
हे अग्ने ! वयमूतये त्वार्चन्तो हवामहे त्वामर्चन्तः समिधीमहि त्वामर्चन्तो विपश्चितो भवेम ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात अग्नी व विद्वान यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.