वांछित मन्त्र चुनें

अग्न॒ ओजि॑ष्ठ॒मा भ॑र द्यु॒म्नम॒स्मभ्य॑मध्रिगो। प्र नो॑ रा॒या परी॑णसा॒ रत्सि॒ वाजा॑य॒ पन्था॑म् ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agna ojiṣṭham ā bhara dyumnam asmabhyam adhrigo | pra no rāyā parīṇasā ratsi vājāya panthām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्ने॑। ओजि॑ष्ठम्। आ। भ॒र॒। द्यु॒म्नम्। अ॒स्मभ्य॑म्। अ॒ध्रि॒गो॒ इत्य॑ध्रि॒ऽगो। प्र। नः॒। रा॒या। परी॑णसा। रत्सि॑। वाजा॑य। पन्था॑म् ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:10» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:2» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:1


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब सात ऋचावाले दशवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अग्निशब्दार्थ विद्वद्विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अध्रिगो) धारण करनेवालों को प्राप्त होनेवाले (अग्ने) विद्वन् ! आप (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (ओजिष्ठम्) अत्यन्त पराक्रमयुक्त (द्युम्नम्) यश वा धन को (आ, भर) चारों ओर से धारण कीजिये और (नः) हम लागों को (परीणसा) बहुत (राया) धन से (वाजाय) विज्ञान के लिये (पन्थाम्) मार्ग को (प्र) प्राप्त होकर (रत्सि) रमते हो, इससे सत्कार करने योग्य हो ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य अन्य जनों के श्रेष्ठ उपदेश से पुण्यकीर्त्ति को बढ़ाते, वे धर्म्म सम्बन्धी यशवाले होते हैं ॥१॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाग्निशब्दार्थविद्वद्गुणानाह ॥

अन्वय:

हे अध्रिगोऽग्ने ! त्वमस्मभ्यमोजिष्ठं द्युम्नमा भर नोऽस्मान् परीणसा राया वाजाय पन्थां प्राप्य रत्सि तस्मात् सत्कर्त्तव्योऽसि ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) विद्वन् (ओजिष्ठम्) अतिशयेन पराक्रमयुक्तम् (आ) (भर) समन्ताद्धर (द्युम्नम्) यशो धनं वा (अस्मभ्यम्) (अध्रिगो) योऽधॄन् धारकान् गच्छन्ति तत्सम्बुद्धौ (प्र) (नः) अस्मान् (राया) धनेन (परीणसा) (रत्सि) रमसे (वाजाय) विज्ञानाय (पन्थाम्) मार्गम् ॥१॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या अन्येषां सदुपदेशेन पुण्यकीर्तिं वर्धयन्ति ते धर्मकीर्तयो भवन्ति ॥१॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात अग्नी शब्दाचा अर्थ, विद्वान व विद्यार्थी यांचे गुणवर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसुक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - जी माणसे इतरांच्या श्रेष्ठ उपदेशानुसार पुण्य करतात व कीर्ती वाढवितात त्यांना धर्मयुक्त कीर्ती प्राप्त होते.