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प्र स॒द्यो अ॑ग्ने॒ अत्ये॑ष्य॒न्याना॒विर्यस्मै॒ चारु॑तमो ब॒भूथ॑। ई॒ळेन्यो॑ वपु॒ष्यो॑ वि॒भावा॑ प्रि॒यो वि॒शामति॑थि॒र्मानु॑षीणाम् ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra sadyo agne aty eṣy anyān āvir yasmai cārutamo babhūtha | īḻenyo vapuṣyo vibhāvā priyo viśām atithir mānuṣīṇām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। स॒द्यः। अ॒ग्ने॒। अति॑। ए॒षि॒। अ॒न्यान्। आ॒विः। यस्मै॑। चारु॑ऽतमः। ब॒भूथ॑। ई॒ळेन्यः॑। व॒पु॒ष्यः॑। वि॒भाऽवा॑। प्रि॒यः। वि॒शाम्। अति॑थिः। मानु॑षीणाम् ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:1» मन्त्र:9 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:13» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् ! (यस्मै) जिसके लिये आप (आविः) प्रकट (बभूथ) होते हो वह (ईळेन्यः) प्रशंसा करने योग्य धर्म्मयुक्त कर्म्म करनेवाला (वपुष्यः) सुन्दर रूप में प्रसिद्ध (विभावा) विशेष कान्तियुक्त (चारुतमः) अत्यन्त सुशील और सुन्दर और (मानुषीणाम्) मनुष्यादिरूप (विशाम्) प्रजाओं को (प्रियः) कामना वा सेवा करने योग्य (अतिथिः) सर्वत्र घूमनेवाला (प्र) समर्थ होता है, जिस कारण आप (अन्यान्) प्रथम उपदेश दिये हुओं को (सद्यः) तुल्य दिन में (अति, एषि) उल्लङ्घन करके प्राप्त होते हो, वह आप हम लोगों से सत्कार करने योग्य हो ॥९॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य नित्य भ्रमण करते और प्राप्त हुए जनों को उपदेश कर और नहीं प्राप्त हुओं को उपदेश के लिये प्राप्त होते तथा सब के हितैषी बड़े विद्वान् और यथार्थवादी हैं, वे ही अतिथि होने के योग्य हैं ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने! यस्मै त्वमाविर्बभूथ स ईळेन्यो वपुष्यो विभावा चारुतमो मानुषीणां विशां प्रियोऽतिथिः प्र भवति यतस्त्वमन्यान् सद्योऽत्येषि स भवानस्माभिः सत्कर्त्तव्योऽस्ति ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (सद्यः) समानेऽहनि (अग्ने) विद्वन् (अति) उल्लङ्घने (एषि) (अन्यान्) पूर्वोपदिष्टान् (आविः) प्राकट्ये (यस्मै) (चारुतमः) अतिशयेन सुशीलः सुन्दरः (बभूथ) भवसि (ईळेन्यः) प्रशंसनीयधर्म्यकर्मा (वपुष्यः) वपुषि सुन्दरे रूपे भवः (विभावा) विशेषेण भानवान् (प्रियः) कमनीयः सेवनीयो वा (विशाम्) प्रजानाम् (अतिथिः) सर्वत्र भ्रमणकर्त्ता (मानुषीणाम्) मनुष्यादिरूपाणाम् ॥९॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या नित्यं भ्रमन्ति प्राप्तानुपदिश्याऽप्राप्तानुपदेशाय गच्छन्ति सर्वेषां हितैषिणो महाविद्वांस आप्ताः सन्ति त एवाऽतिथयो भवितुमर्हन्ति ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे नित्य भ्रमण करतात व उपस्थित आणि अनुपस्थित असलेल्यांना उपदेश करू शकतात, ती सर्वांचे कल्याण करणारी महान विद्वान आप्त असतात, तीच अतिथी होण्यायोग्य असतात. ॥ ९ ॥