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अ॒स्माकं॑ जोष्यध्व॒रम॒स्माकं॑ य॒ज्ञम॑ङ्गिरः। अ॒स्माकं॑ शृणुधी॒ हव॑म् ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asmākaṁ joṣy adhvaram asmākaṁ yajñam aṅgiraḥ | asmākaṁ śṛṇudhī havam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒स्माक॑म्। जो॒षि॒। अ॒ध्व॒रम्। अ॒स्माक॑म्। य॒ज्ञम्। अ॒ङ्गि॒रः॒। अ॒स्माक॑म्। शृ॒णु॒धि॒। हव॑म्॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:9» मन्त्र:7 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:9» मन्त्र:7 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अङ्गिरः) प्राण के सदृश प्रिय राजन् ! जिससे आप (अस्माकम्) हम लोगों के (अध्वरम्) न्यायव्यवहार और (अस्माकम्) हम लोगों के (यज्ञम्) विद्वानों के सत्कार आदि क्रियामय व्यवहार को (जोषि) सेवन करते हो इससे (अस्माकम्) हम लोगों के (हवम्) शब्द अर्थ सम्बन्धरूप विषय को (शृणुधि) सुनिये ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! जिससे कि आप हम लोगों की रक्षा करनेवाले प्रिय हैं, इससे अर्थी अर्थात् मुद्दई और प्रत्यर्थी अर्थात् मुद्दायले के वचनों को सुन के निरन्तर न्याय विधान करो ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अङ्गिरो राजन् ! यतस्त्वमस्माकमध्वरमस्माकं यज्ञं जोषि तस्मादस्माकं हवं शृणुधि ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्माकम्) (जोषि) सेवसे (अध्वरम्) न्यायव्यवहारम् (अस्माकम्) (यज्ञम्) विद्वत्सत्कारादिक्रियामयम् (अङ्गिरः) प्राण इव प्रिय (अस्माकम्) (शृणुधि) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (हवम्) शब्दार्थसम्बन्धविषयम् ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! यतो भवानस्माकं रक्षकः प्रियोऽसि तस्मादर्थिप्रत्यर्थिनां वचांसि श्रुत्वा सततं न्यायं विधेहि ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा ! तू आमचा प्रिय रक्षक आहेस. तेव्हा आरोपी व प्रत्यारोपी यांचे वचन ऐकून निरंतर न्याय कर. ॥ ७ ॥