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स मानु॑षीषु दू॒ळभो॑ वि॒क्षु प्रा॒वीरम॑र्त्यः। दू॒तो विश्वे॑षां भुवत् ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa mānuṣīṣu dūḻabho vikṣu prāvīr amartyaḥ | dūto viśveṣām bhuvat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। मानु॑षीषु। दुः॒ऽदभः॑। वि॒क्षु। प्र॒ऽअ॒वीः। अम॑र्त्यः। दूतः। विश्वे॑षाम्। भु॒व॒त्॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:9» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:9» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (मानुषीषु) मनुष्यसंबन्धी (विक्षु) प्रजाओं में (विश्वेषाम्) सब की (प्रावीः) उत्तम विद्या में व्याप्त (अमर्त्यः) मर्त्य के स्वभाव से रहित (दूतः) सम्पूर्ण विद्याओं का प्राप्त करानेवाला (भुवत्) होता है (सः) वह इस संसार में (दूळभः) दुर्लभ है, ऐसा जानना चाहिये ॥२॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वान् लोग सब लोगों के सुखसाधक विद्या के देनेवाले और मनुष्यों को धर्म के आचरण में प्रवेश करानेवाले स्वयं धार्मिक होवें, वे संसार में दुर्लभ हैं ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यो मानुषीषु विक्षु विश्वेषां प्रावीरमर्त्यो दूतो भुवत्स इह दूळभोऽस्तीति वेद्यम् ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) विद्वान् (मानुषीषु) मनुष्याणामिमासु (दूळभः) दुःखेन लब्धुं योग्यः (विक्षु) प्रजासु (प्रावीः) प्रकृष्टविद्याव्यापी (अमर्त्यः) मर्त्यस्वभावरहितः (दूतः) उपक्षेता सर्वविद्याप्रापकः (विश्वेषाम्) सर्वेषाम् (भुवत्) ॥२॥
भावार्थभाषाः - ये विद्वांसस्सर्वेषां सुखसाधका विद्याप्रदा मनुष्याणां धर्म्माऽऽचरणे प्रवेशकाः स्वयं धार्मिकाः स्युस्ते जगति दुर्ल्लभाः सन्ति ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्वान सर्व लोकांना सुख देणारे, विद्या देणारे व माणसांना धर्माच्या आचरणात प्रवृत्त करविणारे असून स्वतः धार्मिक असतात ते लोक जगात दुर्लभ असतात. ॥ २ ॥