स हि वेदा॒ वसु॑धितिं म॒हाँ आ॒रोध॑नं दि॒वः। स दे॒वाँ एह व॑क्षति ॥२॥
sa hi vedā vasudhitim mahām̐ ārodhanaṁ divaḥ | sa devām̐ eha vakṣati ||
सः। हि। वेद॑। वसु॑ऽधितिम्। म॒हान्। आ॒ऽरोध॑नम्। दि॒वः। सः। दे॒वान्। आ। इ॒ह। व॒क्ष॒ति॒॥२॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
हे मनुष्या ! यं दिव आरोधनं वसुधितिं विद्वान् वेद स हि महान् वर्त्तत स इह देवानावक्षतीति विजानीत ॥२॥