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स हि वेदा॒ वसु॑धितिं म॒हाँ आ॒रोध॑नं दि॒वः। स दे॒वाँ एह व॑क्षति ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa hi vedā vasudhitim mahām̐ ārodhanaṁ divaḥ | sa devām̐ eha vakṣati ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। हि। वेद॑। वसु॑ऽधितिम्। म॒हान्। आ॒ऽरोध॑नम्। दि॒वः। सः। दे॒वान्। आ। इ॒ह। व॒क्ष॒ति॒॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:8» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:8» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जिसको (दिवः) प्रकाश के (आरोधनम्) रोकने और (वसुधितिम्) द्रव्यों के धारण करनेवाले को विद्वान् (वेद) जानता है (सः) वह (हि) जिससे (महान्) बड़ा है और (सः) वह (इह) इस संसार में (देवान्) श्रेष्ठ गुण और भोगों को (आ, वक्षति) प्राप्त कराता है, ऐसा जानो ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो बिजुलीरूप अग्नि श्रेष्ठ भोग और गुणों का दाता सूर्य्य का भी सूर्य्य और सब का धारण करनेवाला व्याप्त है, उसको जानके कार्य्यों को सिद्ध करो ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यं दिव आरोधनं वसुधितिं विद्वान् वेद स हि महान् वर्त्तत स इह देवानावक्षतीति विजानीत ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (हि) यतः (वेद) वेत्ति। द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (वसुधितिम्) वसूनां द्रव्याणां धारकम् (महान्) (आरोधनम्) रोधनम् (दिवः) प्रकाशस्य (सः) (देवान्) दिव्यान् गुणान् भोगान् (आ) (इह) (वक्षति) वहति प्रापयति ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! यो विद्युदग्निर्दिव्यभोगगुणप्रदः सूर्यस्याऽपि सूर्यः सर्वधर्त्ता व्याप्तोऽस्ति तं विदित्वा कार्य्याणि साध्नुत ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जो विद्युतरूपी अग्नी श्रेष्ठ भोगांच्या गुणांचा दाता, सूर्याचाही सूर्य, सर्वांना धारण करणारा व सर्वात व्याप्त आहे, त्याला जाणून कार्य सिद्ध करा. ॥ २ ॥