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दू॒तं वो॑ वि॒श्ववे॑दसं हव्य॒वाह॒मम॑र्त्यम्। यजि॑ष्ठमृञ्जसे गि॒रा ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

dūtaṁ vo viśvavedasaṁ havyavāham amartyam | yajiṣṭham ṛñjase girā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दू॒तम्। वः॒। वि॒श्वऽवे॑दसम्। ह॒व्य॒ऽवाह॑म्। अम॑र्त्यम्। यजि॑ष्ठम्। ऋ॒ञ्ज॒से॒। गि॒रा॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:8» मन्त्र:1 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:8» मन्त्र:1 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब आठ ऋचावाले आठवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अग्निविषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (वः) तुम्हारे बीच जिस (दूतम्) उत्तम दूत के सदृश वर्त्तमान (अमर्त्यम्) नाश से रहित (विश्ववेदसम्) सब में विद्यमान (यजिष्ठम्) अत्यन्त मिलानेवाले (हव्यवाहम्) ग्रहण करने योग्य पदार्थों को पहुँचाने वा प्राप्त करानेवाले को (गिरा) वाणी से हम लोग जानते हैं। हे विद्वन् ! जिससे आप कार्य्यों को (ऋञ्जसे) सिद्ध करते हो, उसको आप लोग जान के कार्य्य में लगाइये ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! यही बिजुलीरूप अग्नि दूत के सदृश कार्यों को सिद्ध करनेवाला है, ऐसा आप लोग जानो ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाग्निविषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्याः ! वो यं दूतमिव वर्तमानममर्त्यं विश्ववेदसं यजिष्ठं हव्यवाहं गिरा वयं विजानीमः। हे विद्वन् ! येन त्वं कार्य्याण्यृञ्जसे तं यूयं विज्ञाय सम्प्रयुङ्ध्वम् ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (दूतम्) उत्तमं दूतमिवं वर्त्तमानं वह्निम् (वः) युष्माकम् (विश्ववेदसम्) विश्वस्मिन् विद्यमानम् (हव्यवाहम्) यो हव्यान्यादातुमर्हाणि वहति गमयति प्रापयति वा तम् (अमर्त्यम्) नाशरहितम् (यजिष्ठम्) अतिशयेन सङ्गमयितारम् (ऋञ्जसे) प्रसाध्नोसि (गिरा) वाण्या ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! अयमेव विद्युदग्निर्दूतवत्कार्यसाधकोऽस्तीति यूयं वित्त ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात अग्नी व विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वीच्या सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! हाच विद्युतरूपी अग्नी दूताप्रमाणे कार्य सिद्ध करणारा आहे, हे तुम्ही जाणा. ॥ १ ॥