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तृ॒षु यदन्ना॑ तृ॒षुणा॑ व॒वक्ष॑ तृ॒षुं दू॒तं कृ॑णुते य॒ह्वो अ॒ग्निः। वात॑स्य मे॒ळिं स॑चते नि॒जूर्व॑न्ना॒शुं न वा॑जयते हि॒न्वे अर्वा॑ ॥११॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tṛṣu yad annā tṛṣuṇā vavakṣa tṛṣuṁ dūtaṁ kṛṇute yahvo agniḥ | vātasya meḻiṁ sacate nijūrvann āśuṁ na vājayate hinve arvā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तृ॒षु। यत्। अन्ना॑। तृ॒षुणा॑। व॒वक्ष॑। तृ॒षुम्। दू॒तम्। कृ॒णु॒ते॒। य॒ह्वः। अ॒ग्निः। वात॑स्य। मे॒ळिम्। स॒च॒ते॒। नि॒ऽजूर्व॑न्। आ॒शुम्। न। वा॒ज॒य॒ते॒। हि॒न्वे। अर्वा॑॥११॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:7» मन्त्र:11 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:7» मन्त्र:6 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर शिल्पि विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यत्) जो (यह्वः) बड़े (अर्वा) घोड़े के सदृश (निजूर्वन्) निरन्तर शीघ्र चलती हुई (अग्निः) बिजुली (तृषुणा) शीघ्रता से युक्त (अन्ना) अन्न आदिक पदार्थों को (तृषु) शीघ्र (ववक्ष) प्राप्त कराती है (तृषुम्) शीघ्र कार्य्यकारी (दूतम्) समाचार पहुँचानेवाले जन के सदृश अपने प्रताप को (कृणुते) करती है और (वातस्य) पवन के (मेळिम्) सङ्गम का (सचते) सम्बन्ध करती है जिसको विद्वान् जन (आशुम्) शीघ्र चलनेवाले घोड़े के (न) सदृश (वाजयते) चलाता है, मैं (हिन्वे) चलाऊँ, उसको आप लोग जानिये ॥११॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य बिजुली और वायु आदि के योग की विद्या को जानें तो वे दूत और घोड़े के सदृश दूर वाहन और समाचार को पहुँचा सकें ॥११॥ इस सूक्त में अग्नि और विद्वान् के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥११॥ यह सातवाँ सूक्त और सातवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुन शिल्पिविद्वद्विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यद्यो यह्वोऽर्वेव निजूर्वन्नग्निस्तृषुणाऽन्ना तृषु ववक्ष तृषु दूतमिव कृणुते वातस्य मेळिं सचते यं विद्वानाशुं न वाजयतेऽहं हिन्वे तं यूयं विजानीत ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तृषु) क्षिप्रम्। तृष्विति क्षिप्रनामसु पठितम्। (निघं०२.१५) (यत्) यः (अन्ना) अन्नादीनि (तृषुणा) क्षिप्रेण (ववक्ष) वहति (तृषुम्) क्षिप्रकारिणम् (दूतम्) दूतमिव (कृणुते) करोति (यह्वः) महान् (अग्निः) विद्युत् (वातस्य) (मेळिम्) सङ्गमम् (सचते) समवैति (निजूर्वन्) नितरां सद्यो गच्छन् (आशुम्) शीघ्रगामिनमश्वम् (न) इव (वाजयते) गमयति (हिन्वे) गमयेय (अर्वा) वाजीव ॥११॥
भावार्थभाषाः - यदि मनुष्याः विद्युद्वाय्वादियोगविद्यां जानीयुस्तर्हि ते दूतवदश्ववद्दूरं यानं समाचारं च गमयितुं शक्नुयुः ॥११॥ अत्राग्निविद्युद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥११॥ इति सप्तमं सूक्तं सप्तमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे विद्युत व वायू इत्यादींच्या योगविद्या जाणतात तेव्हा ती दूताप्रमाणे व अश्वाप्रमाणे दूर यान व वार्ता पोचवू शकतात. ॥ ११ ॥