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किं नो॑ अ॒स्य द्रवि॑णं॒ कद्ध॒ रत्नं॒ वि नो॑ वोचो जातवेदश्चिकि॒त्वान्। गुहाध्व॑नः पर॒मं यन्नो॑ अ॒स्य रेकु॑ प॒दं न नि॑दा॒ना अग॑न्म ॥१२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kiṁ no asya draviṇaṁ kad dha ratnaṁ vi no voco jātavedaś cikitvān | guhādhvanaḥ paramaṁ yan no asya reku padaṁ na nidānā aganma ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

किम्। नः॒। अ॒स्य। द्रवि॑णम्। कत्। ह॒। रत्नम्। वि। नः॒। वो॒चः॒। जा॒त॒ऽवे॒दः। चि॒कि॒त्वान्। गुहा॑। अध्व॑नः। प॒र॒मम्। यत्। नः॒। अ॒स्य। रेकु॑। प॒दम्। न। नि॒दा॒नाः। अग॑न्म॥१२॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:5» मन्त्र:12 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:3» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:12


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर प्रच्छक विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (जातवेदः) विद्यायुक्त (चिकित्वान्) विचारशील ! आप (अस्य) इस संसार में (नः) हम लोगों का (किम्) क्या (द्रविणम्) यश और (किम्) क्या (रत्नम्) धन है ऐसा (नः) हम लोगों को (कत्, ह) कभी (वि, वोचः) उपदेश कीजिये (यत्) जो (गुहा) बुद्धि के (अध्वनः) मार्ग के (परमम्) उत्तम प्राप्त होने योग्य को प्राप्त हुए (नः) हम लोगों को (रेकु) शङ्कायुक्त (पदम्) प्राप्त होने योग्य स्थान के (न) तुल्य (नः) हम लोगों के (निदानाः) निन्दा करते हुए (अस्य) इस संसार के मध्य में हों, उनको त्याग के (अगन्म) प्राप्त हुए वह क्या है ॥१२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे विद्वानो ! हम लोगों में क्या यश? क्या सुन्दर वस्तु? और कौन लोग हम लोगों की निन्दा करनेवाले? और क्या शङ्का करने योग्य वस्तु? और क्या प्राप्त होने योग्य स्थान है? इनके उत्तर कहो ॥१२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः प्रच्छकविषयमाह ॥

अन्वय:

हे जातवेदश्चिकित्वाँस्त्वमस्य नः किं द्रविणं किं रत्नमस्तीति न कद्ध विवोचः यद् गुहाऽध्वनः परमं प्राप्तान्नोऽस्मान् रेकु पदं न नोऽस्मान्निदाना अस्य संसारस्य मध्ये स्युस्तान् विहायाऽगन्म तत्किमिति ॥१२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (किम्) प्रश्ने (नः) अस्माकम् (अस्य) संसारस्य मध्ये (द्रविणम्) यशः (कत्) कदा (ह) किल (रत्नम्) धनम् (वि) (नः) अस्मान् (वोचः) उपदिशेः (जातवेदः) जातविद्य (चिकित्वान्) विवेकी (गुहा) बुद्धेः (अध्वनः) मार्गस्य (परमम्) प्रकृष्टं प्रापणीयम् (यत्) (नः) अस्माकम् (अस्य) (रेकु) शङ्कितम् (पदम्) प्रापणीयम् (न) इव (निदानाः) निन्दां कुर्वाणाः (अगन्म) ॥१२॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। हे विद्वांसोऽस्मासु किं यशः किं रमणीयं वस्तु के चाऽस्माकं निन्दकाः किं च शङ्कनीयं वस्तु किं च प्रापणीयं पदमस्तीत्युत्तराणि ब्रूत ॥१२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे विद्वानांनो! आमच्यामध्ये कोणते यश, कोणती सुंदर वस्तू, कोण आमची निंदा करणारे, कोणती शंका घेण्यायोग्य वस्तू आहे व कोणते स्थान प्राप्त होण्यायोग्य आहे याचे उत्तर द्या. ॥ १२ ॥