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ते वो॑ हृ॒दे मन॑से सन्तु य॒ज्ञा जुष्टा॑सो अ॒द्य घृ॒तनि॑र्णिजो गुः। प्र वः॑ सु॒तासो॑ हरयन्त पू॒र्णाः क्रत्वे॒ दक्षा॑य हर्षयन्त पी॒ताः ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

te vo hṛde manase santu yajñā juṣṭāso adya ghṛtanirṇijo guḥ | pra vaḥ sutāso harayanta pūrṇāḥ kratve dakṣāya harṣayanta pītāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ते। वः॒। हृ॒दे। मन॑से। स॒न्तु॒। य॒ज्ञाः। जुष्टा॑सः। अ॒द्य। घृ॒तऽनि॑र्निजः। गुः॒। प्र। वः॒। सु॒तासः॑। ह॒र॒य॒न्त॒। पू॒र्णाः। क्रत्वे॑। दक्षा॑य। ह॒र्ष॒य॒न्त॒। पी॒ताः ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:37» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:9» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:4» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! (ते) वे (हृदे) हृदय वा (मनसे) अन्तःकरण के लिये (अद्य) आज (वः) आप लोगों के (घृतनिर्णिजः) घृत वा जल से शुद्ध किये गये (जुष्टासः) विद्वानों से सेवित (यज्ञाः) सत्य व्यवहार प्राप्त (सन्तु) होवें (सुतासः) उत्पन्न हुए (वः) आप लोगों को (गुः) प्राप्त हों और (प्र, हरयन्त) कामना करें तथा (क्रत्वे) बुद्धि और (दक्षाय) चतुरता के लिये (पूर्णाः) पूर्ण (पीताः) पालन किये गये (हर्षयन्त) प्रसन्न होवें ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! आप लोग ऐसा पुरुषार्थ करो, जिससे पवित्रता, बुद्धि और चातुर्य्य बढ़े और जो मांस, मद्य के आहार का त्याग करके उत्तम पदार्थ का भोग करते, वे निरन्तर विज्ञान को बढ़ाते हैं ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसस्ते हृदे मनसेऽद्य वो घृतनिर्णिजो जुष्टासो यज्ञाः प्राप्ताः सन्तु सुतासो वो गुः प्र हरयन्त क्रत्वे दक्षाय पूर्णाः पीता हर्षयन्त ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) (वः) युष्माकम् (हृदे) हृदयाय (मनसे) अन्तःकरणाय (सन्तु) (यज्ञाः) सत्या व्यवहाराः (जुष्टासः) विद्वद्भिः सेविताः (अद्य) (घृतनिर्णिजः) घृतेनाज्येनोदकेन शुद्धीकृताः (गुः) प्राप्नुवन्तु (प्र) (वः) युष्मान् (सुतासः) निष्पन्नाः (हरयन्त) कामयन्ताम् (पूर्णाः) (क्रत्वे) प्रज्ञायै (दक्षाय) चातुर्याय (हर्षयन्त) (पीताः) ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! भवन्त एवं पुरुषार्थमनुतिष्ठन्तु यतो पवित्रता प्रज्ञा चातुर्य्यञ्च वर्द्धेरन्। ये मांसमद्याहारं विहायोत्तमं भुञ्जते ते सततं विज्ञानमुन्नयन्ति ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! तुम्ही असा पुरुषार्थ करा की, ज्यामुळे पवित्रता, बुद्धी व चातुर्य वाढेल. जे मद्य, मांसाच्या आहाराचा त्याग करतात व उत्तम पदार्थांचा भोग करतात ते निरंतर विज्ञान वाढवितात. ॥ २ ॥