वांछित मन्त्र चुनें

रथं॒ चे च॒क्रुः सु॒वृतं॑ सु॒चेत॒सोऽवि॑ह्वरन्तं॒ मन॑स॒स्परि॒ ध्यया॑। ताँ ऊ॒ न्व१॒॑स्य सव॑नस्य पी॒तय॒ आ वो॑ वाजा ऋभवो वेदयामसि ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

rathaṁ ye cakruḥ suvṛtaṁ sucetaso vihvarantam manasas pari dhyayā | tām̐ ū nv asya savanasya pītaya ā vo vājā ṛbhavo vedayāmasi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

रथ॑म्। ये। च॒क्रुः। सु॒ऽवृत॑म्। सु॒ऽचेत॑सः। अवि॑ऽह्वरन्तम्। मन॑सः। परि॑। ध्यया॑। तान्। ऊ॒म् इति॑। नु। अ॒स्य। सव॑नस्य। पी॒तये॑। आ। वः॒। वा॒जाः॒। ऋ॒भ॒वः॒। वे॒द॒या॒म॒सि॒ ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:36» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:7» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:4» मन्त्र:2


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वाजाः) हस्तक्रिया को प्राप्त हुए (ऋभवः) बुद्धिमानो ! (ये) जो (वः) आप लोगों को (अस्य) इस (सवनस्य) शिल्पविद्या से उत्पन्न हुए कार्य की (पीतये) तृप्ति के लिये (सुचेतसः) उत्तम विज्ञानवाले (मनसः) विज्ञान से (ध्यया) ध्यान से (अविह्वरन्तम्) नहीं टेढ़े चलनेवाले (सुवृतम्) उत्तम प्रकार अङ्ग और उपाङ्गों के सहित (रथम्) विमान आदि वाहन को (परि, चक्रुः) सब ओर से बनाते हैं और जिनको हम लोग (आ, वेदयामसि) जनाते हैं (तान्) उनको (नु) निश्चय करके (उ) ही आप लोग शीघ्र ग्रहण कीजिये ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे बुद्धिमानो ! जो वाहनो के बनाने और चलाने में चतुर शिल्पीजन होवें, उनका ग्रहण और सत्कार करके शिल्पविद्या की उन्नति करो ॥२॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे वाजा ऋभवो ! ये वोऽस्य सनवस्य पीतये सुचेतसो मनसो ध्ययाविह्वरन्तं सुवृतं रथं परि चक्रुर्यान् वयमावेदयामसि तान्नू यूयं सद्यः परिगृह्णीत ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (रथम्) विमानादियानम् (ये) (चक्रुः) कुर्वन्ति (सुवृतम्) सुष्ठु साङ्गोपाङ्गसहितम् (सुचेतसः) सुष्ठुविज्ञानाः (अविह्वरन्तम्) अकुटिलगतिम् (मनसः) विज्ञानात् (परि) (ध्यया) ध्यानेन (तान्) (उ) (नु) (अस्य) (सवनस्य) शिल्पविद्याजनितस्य कार्यस्य (पीतये) तृप्तये (आ) (वः) युष्मान् (वाजा) प्राप्तहस्तक्रियाः (ऋभवः) मेधाविनः (वेदयामसि) वेदयामः प्रज्ञापयामः ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मेधाविनो ये यानरचनचालनकुशलाः शिल्पिनः स्युस्तान् परिगृह्य सत्कृत्य शिल्पविद्योन्नतिं कुरुत ॥२॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे बुद्धिमानांनो! जे यान तयार करणारे व चालविणारे चतुर कारागीर असतात त्यांचे ग्रहण व सत्कार करून शिल्पविद्येची उन्नती करा. ॥ २ ॥