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अ॒भि त्वा॒ गोत॑मा गि॒रानू॑षत॒ प्र दा॒वने॑। इन्द्र॒ वाजा॑य॒ घृष्व॑ये ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

abhi tvā gotamā girānūṣata pra dāvane | indra vājāya ghṛṣvaye ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒भि। त्वा॒। गोत॑माः। गि॒रा। अनू॑षत। प्र। दा॒वने॑। इन्द्र॑। वाजा॑य। घृष्व॑ये ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:32» मन्त्र:9 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:28» मन्त्र:4 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) राजन् ! (गोतमाः) श्रेष्ठ वाणी से युक्त जन (गिरा) वाणी से (त्वा) आपकी (अभि, अनूषत) सब ओर से स्तुति करें (वाजाय) विज्ञान और अन्न आदि के (घृष्वये) घिसे अर्थात् शुद्ध और (दावने) देनेवाले के लिये (प्र) उत्तम प्रकार स्तुति करें, उनकी आप प्रशंसा करो ॥९॥
भावार्थभाषाः - जिसकी प्रशंसा विद्वान् जन करते हैं, वही प्रशंसित मानने के योग्य है ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! ये गोतमा गिरा त्वाभ्यनूषत वाजाय घृष्वये दावने प्राऽनूषत तांस्त्वं प्रशंस ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अभि) (त्वा) त्वाम् (गोतमाः) प्रशस्ता गोर्वाग्विद्यते येषान्ते। गौरिति वाङ्नामसु पठितम्। (निघं०१.११) (गिरा) वाण्या (अनूषत) स्तुवन्तु (प्र) (दावने) दात्रे (इन्द्र) राजन् (वाजाय) विज्ञानाऽन्नाद्याय (घृष्वये) घर्षिताय शुद्धाय ॥९॥
भावार्थभाषाः - यस्य प्रशंसां विद्वांसः कुर्वन्ति स एव प्रशंसितो मन्तव्यः ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्याची प्रशंसा विद्वान लोक करतात तोच प्रशंसित मानण्यायोग्य आहे. ॥ ९ ॥