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अ॒स्माकं॑ त्वा मती॒नामा स्तोम॑ इन्द्र यच्छतु। अ॒र्वागा व॑र्तया॒ हरी॑ ॥१५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asmākaṁ tvā matīnām ā stoma indra yacchatu | arvāg ā vartayā harī ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒स्माक॑म्। त्वा॒। म॒ती॒नाम्। आ। स्तोमः॑। इ॒न्द्र॒। य॒च्छ॒तु॒। अ॒र्वाक्। आ। व॒र्त॒य॒। हरी॒ इति॑ ॥१५॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:32» मन्त्र:15 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:29» मन्त्र:5 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:15


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) राजन् ! (अस्माकम्) हम (मतीनाम्) विचारशील मनुष्यों की (स्तोमः) स्तुति जिन (त्वा) आपको (आ, यच्छतु) प्राप्त होवे वह आप (अर्वाक्) फिर (हरी) अग्नि जल वा घोड़ों को (आ, वर्त्तय) अच्छे प्रकार वर्त्ताइये ॥१५॥
भावार्थभाषाः - जिस विद्या और विनय से युक्त राजा को सब प्रकार प्रशंसा प्राप्त होवे, वही प्रजा को नियमयुक्त कर सके ॥१५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! अस्माकं मतीनां स्तोमो यं त्वा आ यच्छतु स त्वमर्वाग्धरी आवर्त्तय ॥१५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्माकम्) (त्वा) त्वाम् (मतीनाम्) मननशीलानां मनुष्याणाम् (आ) (स्तोमः) स्तुतिः (इन्द्र) (यच्छतु) निगृह्णातु (अर्वाक्) पुनः (आ) (वर्त्तय) अत्र संहितायामिति दीर्घः । (हरी) अग्निजले अश्वौ वा ॥१५॥
भावार्थभाषाः - यं विद्याविनययुक्तं राजानं सर्वतः प्रशंसा प्राप्नुयात् स एव प्रजा नियन्तुं शक्नुयात् ॥१५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या विद्या विनययुक्त राजाची सर्व प्रकारे प्रशंसा होते तोच प्रजेचे नियमन करू शकतो. ॥ १५ ॥