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यच्चि॒द्धि शश्व॑ता॒मसीन्द्र॒ साधा॑रण॒स्त्वम्। तं त्वा॑ व॒यं ह॑वामहे ॥१३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yac cid dhi śaśvatām asīndra sādhāraṇas tvam | taṁ tvā vayaṁ havāmahe ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्। चि॒त्। हि। शश्व॑ताम्। असि॑। इन्द्र॑। साधा॑रणः। त्वम्। तम्। त्वा॒। व॒यम्। ह॒वा॒म॒हे॒ ॥१३॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:32» मन्त्र:13 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:29» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:13


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य से युक्त जगदीश्वर ! (यत्) जो (त्वम्) आप (शश्वताम्) अनादि काल से हुए प्रकृति आदि पदार्थों के मध्य में (साधारणः) सामान्य से व्याप्त (असि) होते हो (तम्, चित्) उन्हीं (त्वा) आपकी (हि) निश्चय (वयम्) हम लोग (हवामहे) स्तुति करते वा आपका आश्रय करते हैं ॥१३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो परमेश्वर अनादि काल से सिद्ध प्रकृति आदि पदार्थों का स्वामी, उनका धारण करनेवाला, वह कार्य्य का निर्माणकर्ता और कार्य्यों की व्यवस्था करनेवाला अन्तर्यामी है, उसी की सदा उपासना करो ॥१३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र जगदीश्वर ! यद्यस्त्वं शश्वतां प्रकृत्यादीनां मध्ये साधारणोऽसि तं चित् वा हि वयं हवामहे ॥१३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) यः (चित्) अपि (हि) खलु (शश्वताम्) अनादिभूतानां मध्ये (असि) (इन्द्र) परमैश्वर्य्ययुक्त परमेश्वर (साधारणः) सामान्येन व्याप्तः (त्वम्) (तम्) (त्वा) त्वाम् (वयम्) (हवामहे) स्तूमह आश्रयेम ॥१३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यः परमेश्वरः सनातनानां स्वामी धर्ता स कार्यनिर्माता व्यवस्थापकोऽन्तर्यामी वर्त्तते तमेव सदोपासीरन् ॥१३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जो परमेश्वर अनादि काळापासून स्वामी, प्रकृती इत्यादीचा धारणकर्ता, कार्यनिर्माता, व्यवस्थापक असून अन्तर्यामी आहे, त्याचीच सदैव उपासना करा. ॥ १३ ॥