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प्र ते॑ वोचाम वी॒र्या॒३॒॑ या म॑न्दसा॒न आरु॑जः। पुरो॒ दासी॑र॒भीत्य॑ ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra te vocāma vīryā yā mandasāna ārujaḥ | puro dāsīr abhītya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। ते॒। वो॒चा॒म॒। वी॒र्या॑। याः। म॒न्द॒सा॒नः। आ। अरु॑जः। पुरः॑। दासीः॑। अ॒भि॒ऽइत्य॑ ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:32» मन्त्र:10 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:28» मन्त्र:5 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! (मन्दसानः) कामना करते हुए आप शत्रुओं की (याः) जो (दासीः) सेविकाओं के सदृश (आ, अरुजः) सब प्रकार रोगयुक्त (पुरः) नगरियों को (अभीत्य) सब ओर से प्राप्त होकर जीतते हो उन (ते) आपके (वीर्य्या) बल, पराक्रम से युक्त कर्म्मों का हम लोग (प्र, वोचाम) उपदेश करें ॥१०॥
भावार्थभाषाः - जो राजा शत्रुओं का पराजय कर सके, वही राज्य करने को योग्य हो ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे राजन् ! मन्दसानस्त्वं शत्रूणां या दासीरिवारुजः पुरोऽभीत्य विजयसे तस्य ते वीर्या वयं प्रवोचाम ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (ते) तव (वोचाम) उपदिशेम (वीर्या) बलपराक्रमयुक्तानि कर्म्माणि (याः) (मन्दसानः) कामयमानः (आ, अरुजः) समन्ताद्रोगयुक्ताः (पुरः) नगरीः (दासीः) सेविकाः (अभीत्य) अभितः प्राप्य ॥१०॥
भावार्थभाषाः - यो राजा शत्रूणां पराजयं कर्त्तुं शक्नुयात् स एव राज्यं कर्तुमर्हेत् ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो राजा शत्रूंचा पराजय करू शकतो, तोच राज्य करण्यायोग्य असतो. ॥ १० ॥