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न॒हि ष्मा॑ ते श॒तं च॒न राधो॒ वर॑न्त आ॒मुरः॑। न च्यौ॒त्नानि॑ करिष्य॒तः ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

nahi ṣmā te śataṁ cana rādho varanta āmuraḥ | na cyautnāni kariṣyataḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

न॒हि। स्म॒। ते॒। श॒तम्। च॒न। राधः॑। वर॑न्ते। आ॒ऽमुरः॑। न। च्यौ॒त्नानि॑। क॒रि॒ष्य॒तः ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:31» मन्त्र:9 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:25» मन्त्र:4 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! (च्यौत्नानि) बलों को (करिष्यतः) करते हुए (ते) आपके (शतम्) असंख्य (राधः) धन को (चन) भी (आमुरः) सब प्रकार रोग करनेवाले (नहि) नहीं (वरन्ते) स्वीकार करते हैं (न) और न विजय को (स्म) ही प्राप्त होते हैं ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! जो आप यथायोग्य न्यायकारी होवें तो आपका धन और बल कभी न नष्ट होवे और सैकड़ों प्रकार बढ़े ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे राजन् ! च्यौत्नानि करिष्यतस्ते शतं राधश्चनामुरो नहि वरन्ते न च विजयं स्माप्नुवन्ति ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (नहि) निषेधे (स्मा) एव। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (ते) तव (शतम्) असंख्यम् (चन) अपि (राधः) धनम् (वरन्ते) स्वीकुर्वन्ति (आमुरः) समन्ताद् रोगकारिणः (न) (च्यौत्नानि) बलानि (करिष्यतः) ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! यदि भवान् यथावन्न्यायशीलो भवेत्तर्हि तव धनं बलं कदाचिन्न नश्येच्छतशो वर्द्धेत ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा! तू यथायोग्य न्याय केलास तर तुझे धन व बल कधी नष्ट होणार नाही तर शेकडो पटीने वाढेल. ॥ ९ ॥