अ॒स्माक॑मुत्त॒मं कृ॑धि॒ श्रवो॑ दे॒वेषु॑ सूर्य। वर्षि॑ष्ठं॒ द्यामि॑वो॒परि॑ ॥१५॥
asmākam uttamaṁ kṛdhi śravo deveṣu sūrya | varṣiṣṭhaṁ dyām ivopari ||
अ॒स्माक॑म्। उ॒त्ऽत॒मम्। कृ॒धि॒। श्रवः॑। दे॒वेषु॑। सू॒र्य॒। वर्षि॑ष्ठम्। द्याम्ऽइ॑व। उ॒परि॑ ॥१५॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
हे सूर्य्य राजँस्त्वमुपरि द्यामिवाऽस्माकमुत्तमं वर्षिष्ठं श्रवो देवेषु कृधि ॥१५॥