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अ॒स्मभ्यं॒ ताँ अपा॑ वृधि व्र॒जाँ अस्ते॑व॒ गोम॑तः। नवा॑भिरिन्द्रो॒तिभिः॑ ॥१३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asmabhyaṁ tām̐ apā vṛdhi vrajām̐ asteva gomataḥ | navābhir indrotibhiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒स्मभ्य॑म्। तान्। अप॑। वृ॒धि॒। व्र॒जान्। अस्ता॑ऽइव। गोऽम॑तः। नवा॑भिः। इ॒न्द्र॒। ऊ॒तिऽभिः॑ ॥१३॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:31» मन्त्र:13 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:26» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:13


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर प्रजावृद्धिप्रकार से राजप्रजाधर्म विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) परम ऐश्वर्य्य के देनेवाले राजन् ! आप (नवाभिः) नवीन (ऊतिभिः) रक्षादिकों से (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (गोमतः) जिनमें बहुत गौएँ विद्यमान और (व्रजान्) बहुत गौएँ जातीं (तान्) उन गोड़ों (अस्तेव) गृहों के समान बढ़ाइये और दुःखों को (अपा, वृधि) न्यून कीजिये, नष्ट कीजिये ॥१३॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! जैसे गोपाल गौओं को बढ़ा के दुग्धादिकों से आढ्य होते हैं, वैसे ही हम लोगों की वृद्धि करो और आढ्य होकर सदैव आनन्द कीजिये ॥१३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः प्रजावर्द्धनप्रकारेण राजप्रजाधर्मविषयमाह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! त्वं नवाभिरूतिभिरस्मभ्यं गोमतो व्रजाँस्तानस्तेव वृधि दुःखान्यपावृधि ॥१३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्मभ्यम्) (तान्) (अपा) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (वृधि) वर्धय (व्रजान्) व्रजन्ति गावो येषु तान् (अस्तेव) गृहाणीव (गोमतः) बह्व्यो गावो विद्यन्ते येषु तान् (नवाभिः) नूतनाभिः (इन्द्र) परमैश्वर्य्यप्रद राजन् (ऊतिभिः) रक्षादिभिः ॥१३॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! यथा गोपाला गा वर्धयित्वा दुग्धादिभिराढ्या भूत्वाऽऽनन्दन्ति तथैवाऽऽस्मान् वर्धयित्वाऽढ्यो भूत्वा सदैवानन्द ॥१३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा! जसे गोपाल गाईंची वाढ करून दूध इत्यादींनी धनवान होतात तशी आमची वृद्धी कर व आम्हाला धनवान करून आनंदित हो. ॥ १३ ॥