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स॒त्रा ते॒ अनु॑ कृ॒ष्टयो॒ विश्वा॑ च॒क्रेव॑ वावृतुः। स॒त्रा म॒हाँ अ॑सि श्रु॒तः ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

satrā te anu kṛṣṭayo viśvā cakreva vāvṛtuḥ | satrā mahām̐ asi śrutaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒त्रा। ते॒। अनु॑। कृ॒ष्टयः॑। विश्वा॑। च॒क्राऽइ॑व। व॒वृ॒तुः॒। स॒त्रा। म॒हान्। अ॒सि॒। श्रु॒तः ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:30» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:19» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! जो आप (सत्रा) सत्य आचरण के (महान्) बड़े (श्रुतः) सम्पूर्ण शास्त्र के श्रवण से यशयुक्त (असि) हो तो (ते) आपके सम्बन्ध में (सत्रा) सत्य आचरण से (कृष्टयः) मनुष्य (विश्वा) सम्पूर्ण (चक्रेव) चक्रों के सदृश अर्थात् जैसे गाड़ी में पहिया वैसे (अनु, वावृतुः) वर्त्ताव करें ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! आप न्यायकारी होवें तो सम्पूर्ण प्रजा आपके अनुकूल वर्ताव करें ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे राजन् ! यदि त्वं सत्रा महाञ्छ्रुतोऽसि तर्हि ते सत्रा कृष्टयो विश्वा चक्रेवानु वावृतुः ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सत्रा) सत्याचारस्य (ते) तव (अनु) (कृष्टयः) मनुष्याः (विश्वा) सर्वाणि (चक्रेव) चक्राणीव (वावृतुः) वर्त्तेरन्। अत्र तुजादीनामित्यभ्यासदैर्घ्यम्। (सत्रा) सत्याचरणेन (महान्) (असि) (श्रुतः) सकलशास्त्रश्रवणेन कीर्तिमान् ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! भवान् न्यायकारी भवेत्तर्हि सर्वाः प्रजास्त्वामानुवर्त्तेरन् ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा! तू जर न्यायी असशील तर संपूर्ण प्रजा तुझ्या अनुकूल वागेल. ॥ २ ॥