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मा कस्य॑ य॒क्षं सद॒मिद्धु॒रो गा॒ मा वे॒शस्य॑ प्रमिन॒तो मापेः। मा भ्रातु॑रग्ने॒ अनृ॑जोर्ऋ॒णं वे॒र्मा सख्यु॒र्दक्षं॑ रि॒पोर्भु॑जेम ॥१३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mā kasya yakṣaṁ sadam id dhuro gā mā veśasya praminato māpeḥ | mā bhrātur agne anṛjor ṛṇaṁ ver mā sakhyur dakṣaṁ ripor bhujema ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मा। कस्य॑। य॒क्षम्। सद॑म्। इत्। हु॒रः। गाः॒। मा। वे॒शस्य॑। प्र॒ऽमि॒न॒तः। मा। आ॒पेः। मा। भ्रातुः॑। अ॒ग्ने॒। अनृ॑जोः। ऋ॒णम्। वेः॒। मा। सख्युः॑। दक्ष॑म्। रि॒पोः। भु॒जे॒म॒॥१३॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:3» मन्त्र:13 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:22» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:13


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब बुद्धिमानों के बुद्धिमत्ता विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) अग्नि के सदृश प्रकाशमान ! आप (अनृजोः) कुटिल (कस्य) किसी (प्रमिनतः) अत्यन्त हिंसा करनेवाले (वेशस्य) प्रवेश के (हुरः) कुटिल कार्यसम्बन्धी (सदम्) वस्तु को (मा) मत (गाः) प्राप्त होओ और कुटिल (आपेः) प्राप्त हुए के (यक्षम्) प्राप्त होने योग्य वस्तु को (मा) मत प्राप्त होओ, कुटिल (भ्रातुः) बन्धु के प्राप्त होने योग्य वस्तु को (मा) मत प्राप्त होओ, कुटिल (सख्युः) मित्र के (दक्षम्) बल को (मा) मत (वेः) प्राप्त होओ, कुटिल (रिपोः) शत्रु के (ऋणम्) ऋण को (मा) मत प्राप्त होओ, जिससे हम लोग सुख का (इत्) ही (भुजेम) व्यवहार करें ॥१३॥
भावार्थभाषाः - उन्हीं लोगों को बुद्धिमान् समझना चाहिये कि जो अन्याय से किसी का वस्तु, दुष्टवेश, हिंसा करनेवाले का सङ्ग, न्याय से प्राप्त हुए धन का व्यर्थ खर्च, दुष्ट बन्धु का सङ्ग और शत्रु का विश्वास नहीं करके आनन्द का भोग करें ॥१३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

बुद्धिमत्ताविषयमाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! त्वमनृजोः कस्यचित्प्रमिनतो वेशस्य हुरस्सदं मा गाः। अनृजोरापेर्य्यक्षं सदं मा गा अनृजोर्भ्रातुर्यक्षं सदं मा गाः। अनृजोः सख्युर्दक्षं मा वेरवृजो रिपोर्ऋणं मा वेः। येन वयं सुखमिद्भुजेम ॥१३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मा) (कस्य) (यक्षम्) सङ्गन्तव्यम् (सदम्) वस्तु (इत्) एव (हुरः) कुटिलस्य (गाः) प्राप्नुयाः (मा) (वेशस्य) प्रवेशस्य (प्रमिनतः) प्रकर्षेण हिंसतः (मा) (आपेः) प्राप्तस्य (मा) (भ्रातुः) बन्धोः (अग्ने) अग्निरिव प्रकाशमान (अनृजोः) कुटिलस्य (ऋणम्) (वेः) प्राप्नुयाः (मा) (सख्युः) मित्रस्य (दक्षम्) बलम् (रिपोः) शत्रोः (भुजेम) अभ्यवहरेम ॥१३॥
भावार्थभाषाः - त एव धीमन्तो विज्ञेया येऽन्यायेन कस्यचिद्वस्तु दुष्टवेशं हिंसकसङ्गं न्यायेन प्राप्तस्य धनस्याऽन्यथा व्ययं दुष्टबन्धोः सङ्गं शत्रुविश्वासमकृत्वाऽऽनन्दं भुञ्जीरन् ॥१३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे अन्यायाने कुणाचीही वस्तू, दुष्टवेश, हिंसा करणाऱ्यांचा संग, न्यायाने प्राप्त झालेल्या धनाचा व्यर्थ खर्च, दुष्ट बंधूचा संग करीत नाही व शत्रूवर विश्वास ठेवत नाहीत आणि आनंदाचा भोग करतात, त्याच लोकांना बुद्धिमान समजले पाहिजे. ॥ १३ ॥