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को दे॒वाना॒मवो॑ अ॒द्या वृ॑णीते॒ क आ॑दि॒त्याँ अदि॑तिं॒ ज्योति॑रीट्टे। कस्या॒श्विना॒विन्द्रो॑ अ॒ग्निः सु॒तस्यां॒शोः पि॑बन्ति॒ मन॒सावि॑वेनम् ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ko devānām avo adyā vṛṇīte ka ādityām̐ aditiṁ jyotir īṭṭe | kasyāśvināv indro agniḥ sutasyāṁśoḥ pibanti manasāvivenam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कः। दे॒वाना॑म्। अवः॑। अ॒द्य। वृ॒णी॒ते॒। कः। आ॒दि॒त्यान्। अदि॑तिम्। ज्योतिः॑। ई॒ट्टे॒। कस्य॑। अ॒श्विनौ॑। इन्द्रः॑। अ॒ग्निः। सु॒तस्य॑। अं॒शोः। पि॒ब॒न्ति॒। मन॑सा। अ॒वि॑ऽवेनम् ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:25» मन्त्र:3 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:13» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब उत्तम, मध्यम और निकृष्टों को कर्त्तव्यकर्मविषय का उपदेश अगले मन्त्र में दिया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! (कः) कौन (अद्य) आज (देवानाम्) विद्वानों के (अवः) रक्षण आदि का (वृणीते) स्वीकार करता है (कः) कौन (आदित्यान्) मासों के सदृश वर्त्तमान पूर्ण विद्वानों तथा (अदितिम्) पृथिवी और (ज्योतिः) प्रकाश की (ईट्टे) अधिक इच्छा करता है (कस्य) किस (सुतस्य) उत्पन्न (अंशोः) प्राप्त होने योग्य बड़ी औषध के रस के (मनसा) विज्ञान से (अविवेनम्) दुष्ट कामनाओं से रहित जैसे हो, वैसे (अश्विनौ) अन्तरिक्ष-पृथिवी (इन्द्रः) सूर्य्य और (अग्निः) बिजुली वा प्रसिद्धरूप अग्निरस को (पिबन्ति) पीते हैं ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वानों के सङ्ग को करते हैं, वे सूर्य आदि के सदृश सम्पूर्ण कामनाओं को प्राप्त करा सकते हैं और जो नहीं कामना करने योग्य वस्तु की नहीं कामना करते हैं, वे कामनाओं की सिद्धि से युक्त होते हैं, यह उत्तर है ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथोत्तममध्यमनिकृष्टकर्त्तव्यकर्मविषयमाह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसः ! कोऽद्य देवानामवो वृणीते क आदित्यानदितिञ्ज्योतिश्चेट्टे। कस्य सुतस्यांशोर्मनसाऽविवेनमश्विनाविन्द्रोऽग्निश्च रसं पिबन्ति ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कः) (देवानाम्) विदुषाम् (अवः) रक्षणादि (अद्य) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (वृणीते) स्वीकुरुते (कः) (आदित्यान्) मासानिव वर्त्तमानान् पूर्णविद्यान् (अदितिम्) पृथिवीम् (ज्योतिः) प्रकाशम् (ईट्टे) अधीच्छति (कस्य) (अश्विनौ) द्यावापृथिव्यौ (इन्द्रः) सूर्य्यः (अग्निः) विद्युत् प्रसिद्धस्वरूपः (सुतस्य) निष्पन्नस्य (अंशोः) प्राप्तव्यस्य महौषधिरस्य (पिबन्ति) (मनसा) विज्ञानेन (अविवेनम्) दुष्टकामनारहितम् ॥३॥
भावार्थभाषाः - ये विद्वत्सङ्गङ्कुर्वन्ति ते सूर्य्यादिवत् सर्वान् कामान् प्रापयितुं शक्नुवन्ति। येऽकमनीयं न कामयन्ते ते सिद्धकामा जायन्त इत्युत्तरम् ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्वानांची संगती करतात ते सूर्य इत्यादीप्रमाणे संपूर्ण कामना प्राप्त करवू शकतात व जे अयोग्य वस्तूची कामना करीत नाहीत ते सिद्धकाम होतात. ॥ ३ ॥