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आदिद्ध॒ नेम॑ इन्द्रि॒यं य॑जन्त॒ आदित्प॒क्तिः पु॑रो॒ळाशं॑ रिरिच्यात्। आदित्सोमो॒ वि प॑पृच्या॒दसु॑ष्वी॒नादिज्जु॑जोष वृष॒भं यज॑ध्यै ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ād id dha nema indriyaṁ yajanta ād it paktiḥ puroḻāśaṁ riricyāt | ād it somo vi papṛcyād asuṣvīn ād ij jujoṣa vṛṣabhaṁ yajadhyai ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आत्। इत्। ह॒। नेमे॑। इ॒न्द्रि॒यम्। य॒ज॒न्ते॒। आत्। इत्। प॒क्तिः। पु॒रो॒ळाश॑म्। रि॒रि॒च्या॒त्। आत्। इत्। सोमः॑। वि। प॒पृ॒च्या॒त्। असु॑स्वीन्। आत्। इत्। जु॒जो॒ष॒। वृ॒ष॒भम्। यज॑ध्यै ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:24» मन्त्र:5 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:11» मन्त्र:5 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब योग्य आहार-विहार विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जिनके (पुरोळाशम्) उत्तम प्रकार संस्कारयुक्त अन्न को (पक्तिः) पाक (रिरिच्यात्) बढ़ावें वे (नेमे) अन्य जन (आत्) अनन्तर (इत्) ही (इन्द्रियम्) धन को (यजन्ते) प्राप्त होते हैं और जिसके (आत्) अनन्तर (इत्) ही (सोमः) ऐश्वर्य (असुष्वीन्) जो प्राणों को प्राप्त होते हैं उनको (वि, पपृच्यात्) संयुक्त हो वह (आत्) अनन्तर (इत्) ही (यजध्यै) मिलने के लिये (वृषभम्) बलिष्ठ का (जुजोष) सेवन करता है (आत्) अनन्तर (इत्, ह) ही वे सब राज्य और बल को प्राप्त होने के योग्य होवें ॥५॥
भावार्थभाषाः - जो जन उत्तम प्रकार संस्कारयुक्त अन्नों का पाक करके रुचिपूर्वक भोजन करते हैं, वे बल को प्राप्त होके रोग से रहित होने के योग्य होवें और ऐश्वर्य्य को प्राप्त होके धर्म्म और यथार्थवक्ता पुरुषों की सेवा करें ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ युक्ताहारविहारविषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! येषां पुरोळाशं पक्ती रिरिच्यात् ते नेम आदिदिन्द्रियं यजन्ते यस्यादित् सोमोऽसुष्वीन् वि पपृच्यात् स आदिद् यजध्यै वृषभं जुजोष। आदिद्ध ते सर्वे राज्यं बलञ्च प्राप्तुमर्हेयुः ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आत्) आनन्तर्य्ये (इत्) एव (ह) किल (नेमे) अन्ये (इन्द्रियम्) धनम् (यजन्ते) सङ्गच्छन्ते (आत्) (इत्) (पक्तिः) पाकः (पुरोळाशम्) सुसंस्कृतान्नम् (रिरिच्यात्) अतिरिच्यात् (आत्) (इत्) (सोमः) ऐश्वर्य्यम् (वि) (पपृच्यात्) संयुज्येत (असुष्वीन्) येऽसूनभिसुन्वन्ति तान् (आत्) (इत्) (जुजोष) जुषते (वृषभम्) बलिष्ठम् (यजध्यै) यष्टुं सङ्गन्तुम् ॥५॥
भावार्थभाषाः - ये जनाः सुसंस्कृतान्यन्नानि पक्त्वा यथारुचि भुञ्जते ते बलम्प्राप्य रोगातिरिक्ता भवितुमर्हेयुरैश्वर्य्यं प्राप्य धर्म्ममाप्तांश्च सेवेरन् ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - भावार्थ -जी माणसे उत्तम संस्कारित केलेले अन्न शिजवून रुचिपूर्वक भोजन करतात त्यांना बल प्राप्त होते व ती रोगरहित होतात. त्यांनी ऐश्वर्य प्राप्त करून धर्म व आप्त पुरुषांची सेवा करावी. ॥ ५ ॥