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क॒था कद॒स्या उ॒षसो॒ व्यु॑ष्टौ दे॒वो मर्त॑स्य स॒ख्यं जु॑जोष। क॒था कद॑स्य स॒ख्यं सखि॑भ्यो॒ ये अ॑स्मि॒न्कामं॑ सु॒युजं॑ तत॒स्रे ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kathā kad asyā uṣaso vyuṣṭau devo martasya sakhyaṁ jujoṣa | kathā kad asya sakhyaṁ sakhibhyo ye asmin kāmaṁ suyujaṁ tatasre ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

क॒था। कत्। अ॒स्याः। उ॒षसः॑। विऽउ॑ष्टौ। दे॒वः। मर्त॑स्य। स॒ख्यम्। जु॒जो॒ष॒। क॒था। कत्। अ॒स्य॒। स॒ख्यम्। सखि॑ऽभ्यः। ये। अ॒स्मि॒न्। काम॑म्। सु॒ऽयुज॑म्। त॒त॒स्रे ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:23» मन्त्र:5 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:9» मन्त्र:5 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब प्रश्नोत्तर से मैत्रीकरणविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वज्जनो (देवः) सूर्य्य के सदृश विद्वान् (अस्याः) इस वर्त्तमान (उषसः) प्रातःकाल के (व्युष्टौ) विशेष प्रकाश में (मर्त्तस्य) मनुष्य के (सख्यम्) मित्रपने वा मित्र के कर्म का (कत्) कब (कथा) किस प्रकार (जुजोष) सेवन करता है उन (सखिभ्यः) मित्रों के लिये (अस्य) इस का (सख्यम्) मित्रपन वा मित्रकर्म्म (कत्) कब (कथा) किस प्रकार से होने के योग्य है (ये) जो (अस्मिन्) इस मित्रपने रूप कर्म्म में (सुयुजम्) उत्तम प्रकार मिलाने के योग्य (कामम्) इच्छा का (ततस्रे) विस्तार करते हैं ॥५॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वानो ! मनुष्यों को किसके साथ कब मित्रता और किस प्रकार मित्रता का निर्वाह करना चाहिये और मित्रों के साथ कैसे वर्त्तना चाहिये? इस प्रश्न का यह उत्तर है कि जब उत्तम प्रकार परीक्षा करे, तब उसके साथ मित्रता करे और जो इस जगत् में सबके साथ मित्राचार करने की कामना करते हैं, उनके साथ सदा ही मित्रता की रक्षा करनी चाहिये ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ प्रश्नोत्तराभ्याम्मैत्रीकरणविषयमाह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसो ! देवो विद्वानस्या उषसो व्युष्टौ मर्त्तस्य सख्यं कत्कथा जुजोष तेभ्यः सखिभ्योऽस्य सख्यं कत् कथा भवितुं योग्यं येऽस्मिन्त्सुयुजं कामं ततस्रे ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कथा) (कत्) (अस्याः) वर्त्तमानायाः (उषसः) प्रातर्वेलायाः (व्युष्टौ) विशेषदीप्तौ (देवः) सूर्य्य इव विद्वान् (मर्त्तस्य) मनुष्यस्य (सख्यम्) सख्युर्भावं कर्म्म वा (जुजुोष) सेवते (कथा) (कत्) कदा (अस्य) (सख्यम्) सख्युर्भावं कर्म्म वा (सखिभ्यः) मित्रेभ्यः (ये) (अस्मिन्) मित्रभावकर्म्मणि (कामम्) इच्छाम् (सुयुजम्) सुष्ठु योक्तुमर्हम् (ततस्रे) तन्वन्ति ॥५॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वांसो ! मनुष्यैः केन सह कदा मित्रता कथं मित्रत्वनिर्वाहं कर्त्तव्यः। सखिभिस्सह कथं वर्त्तितव्यमिति प्रश्नस्य यदा सम्यक् परीक्षां कुर्य्यात्तदा तेन सह मैत्रीं ये चाऽस्मिञ्जगति सर्वैस्सह मित्राचारं कर्त्तुं कामयन्ते तैः सह सदैव सखित्वं रक्षणीयम् ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वानांनो! माणसांनी कोणाबरोबर व केव्हा मैत्री करावी तसेच मैत्री कशा प्रकारे टिकवावी व मित्रांबरोबर वागावे कसे या प्रश्नाचे उत्तर असे की, उत्तम परीक्षा करून मैत्री करावी व जे या जगात सर्वांबरोबर मैत्री करण्याची कामना करतात त्यांच्याबरोबर सदैव मैत्री करावी. ॥ ५ ॥