क॒था म॒हाम॑वृध॒त्कस्य॒ होतु॑र्य॒ज्ञं जु॑षा॒णो अ॒भि सोम॒मूधः॑। पिब॑न्नुशा॒नो जु॒षमा॑णो॒ अन्धो॑ वव॒क्ष ऋ॒ष्वः शु॑च॒ते धना॑य ॥१॥
kathā mahām avṛdhat kasya hotur yajñaṁ juṣāṇo abhi somam ūdhaḥ | pibann uśāno juṣamāṇo andho vavakṣa ṛṣvaḥ śucate dhanāya ||
क॒था। म॒हाम्। अ॒वृ॒ध॒त्। कस्य॑। होतुः॑। य॒ज्ञम्। जु॒षा॒णः। अ॒भि। सोम॑म्। ऊधः॑। पिब॑न्। उ॒शा॒नः। जु॒षमा॑णः। अन्धः॑। व॒व॒क्षे। ऋ॒ष्वः। शु॒च॒ते। धना॑य ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब ग्यारह ऋचावाले तेईसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में प्रश्नोत्तरविषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ प्रश्नोत्तरविषयमाह ॥
हे विद्वन् ! कस्य होतुर्महां यज्ञं जुषाणः कथाऽभ्यवृधत् य ऊधस्सोमं पिबन्नैश्वर्यमुशानोऽन्धो जुषमाणो ववक्ष ऋष्वस्सन् धनाय शुचते ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात प्रश्नोत्तर, मैत्री, शत्रूंचे निवारण, सेनेचा उत्कर्ष व सत्याचरणाची उत्तमता यांचे वर्णन असल्यामुळे या अर्थाची या पूर्वीच्या सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.