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वि यद्वरां॑सि॒ पर्व॑तस्य वृ॒ण्वे पयो॑भिर्जि॒न्वे अ॒पां जवां॑सि। वि॒दद्गौ॒रस्य॑ गव॒यस्य॒ गोहे॒ यदी॒ वाजा॑य सु॒ध्यो॒३॒॑ वह॑न्ति ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vi yad varāṁsi parvatasya vṛṇve payobhir jinve apāṁ javāṁsi | vidad gaurasya gavayasya gohe yadī vājāya sudhyo vahanti ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वि। यत्। वरां॑सि। पर्व॑तस्य। वृ॒ण्वे। पयः॑ऽभिः। जि॒न्वे। अ॒पाम्। जवां॑सि। वि॒दत्। गौ॒रस्य॑। ग॒व॒यस्य॑। गोहे॑। यदि॑। वाजा॑य। सु॒ऽध्यः॑। वह॑न्ति ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:21» मन्त्र:8 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:6» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! (यदी) जो (सुध्यः) उत्तम बुद्धिवाले जन (वाजाय) वेग के लिये (गौरस्य) गौर (गवयस्य) गोसदृश के (गोहे) गृह में (वि, वहन्ति) स्वीकार करते हैं तो सुख को प्राप्त होते हैं और (यत्) जो मैं (पर्वतस्य) मेघ के (पयोभिः) जलों के सदृश पदार्थों और (वरांसि) स्वीकार करने योग्य धर्म्मयुक्त कर्म्मों का (वृण्वे) स्वीकार करूँ और (अपाम्) जलों के (जवांसि) वेगों के सदृश कर्म्मों को (विदत्) प्राप्त होता हुआ राज्य को (जिन्वे) शोभित करता हूँ, उनका और मेरा आप सत्कार करो ॥८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे गवय के साधर्म्य को गौ धारण करती है, वैसे ही धार्मिक पुरुषों के साधर्म्य को राजा लोग धारण करें और जैसे मेघ जलदान से सब को तृप्त करता है, वैसे ही राजा अभयदान से सब को सुख देवे ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजविषयमाह ॥

अन्वय:

हे राजन् ! यदी सुध्यो वाजाय गौरस्य गवयस्य गोहे वि वहन्ति तर्हि सुखं लभन्ते यद्योऽहं पर्वतस्य पयोभिरिव वरांसि वृण्वेऽपां जवांसि विदत् सन् राज्यं जिन्वे तान्माञ्च भवान् सत्करोतु ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वि) (यत्) यः (वरांसि) वरणीयानि धर्म्याणि कर्म्माणि (पर्वतस्य) मेघस्येव (वृण्वे) स्वीकुर्य्याम् (पयोभिः) उदकैः (जिन्वे) तर्पयामि (अपाम्) जलानाम् (जवांसि) वेगा इव (विदत्) लभमानः (गौरस्य) (गवयस्य) गोसदृशस्य (गोहे) गृहे (यदी) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (वाजाय) वेगाय (सुध्यः) शोभना धीर्येषान्ते (वहन्ति) प्रापयन्ति ॥८॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा गवयस्य साधर्म्यं गौ रक्षति तथैव धार्मिकानां साधर्म्यं राजानो रक्षन्तु यथा मेघो जलदानेन सर्वं प्रीणाति तथैव राजाऽभयदानेन सर्वं सुखयेत् ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे बैलाच्या सामर्थ्याला गाय धारण करते, तसे धार्मिक पुरुषांच्या सामर्थ्याला राजे लोक धारण करतात. जसे मेघ जलाचे दान करून सर्वांना तृप्त करतो तसेच राजाने सर्वांना अभयदान द्यावे व सुखी ठेवावे. ॥ ८ ॥